आई लव यू कोरोना !
आई लव यू कोरोना !


बिस्तर मखमल का था।
उसपे गुलाब ही गुलाब बिखरे हुए थे।
रात पूरे शबाब पे थी।
मेरे सामने मेरी बेहद खूबसूरत नव-वधु ,घूँघट ओढ़े शर्म और नज़ाकत से बैठी मेरे आलिंगन का इंतज़ार कर रही थी।
मेरा दिल एक हसीन कामना से धड़क रहा था।
मैंने धीरे से उसका घूँघट उठाया।
वो सुंदरी हंसी और सकुचाई।
प्रेम, आकांक्षा और अभिलाषा से भरे मेरे उत्तेजित होठ उसके गुलाबी मनोहर अधरों की तरफ बढ़े, और उनका चुम्बन करने ही वाले थे.... कि अचानक एक कर्कश आवाज़ ने कानों के परदे चीर दिए!
“लॉक डाउन में इतनी देर तक सो रहे हो? शर्म नहीं आती। बर्तन कौन धोएगा? तुम्हारी अम्मा ?”
मैं धड़ाम से बिस्तर से नीचे गिरा और मेरा खूबसूरत सपना टूट गया।
सामने मेरी बीवी ताड़का का रूप धारण किये झाड़ू लिए खड़ी थी।
राम जाने क्या सोच के इसके बाप ने इसका नाम स्वीटी रखा था।
बोली और व्यवहार में बिलकुल नाम के विपरीत थी।
लॉक-डाउन से पहले कम से कम मुझे पति समझती थी पर जब से मोदी जी ने ये लॉक-डाउन किया है, मुझे खुद में और गली के कुत्ते में ज्यादा फर्क नहीं दीखता है।
गरज के बोली - “तुमने ही बोला था ना कि बर्तन और झाड़ू तुम करोगे, तो अब नेप काहे रहे हो? सोचा होगा कि एक दो दिन कर दूँगा , फिर ये आगे करती रहेगी। मुझे अपनी कंपनी का एम्प्लोयी समझा है क्या कि कुछ भी अनाप शनाप बोल कर बेवकूफ़ बना लोगे। चलो उठो। रामायण शुरू होने वाला है। बर्तन धो दो ताकि मैं नाश्ता बना सकूँ।“
मैं खिसिया कर अपनी कमर सहलाते हुए उठ ही रहा था कि कर्कशा फिर से बोली - "और तुम ये नींद में कोरोना-कोरोना क्यों बोल रहे थे? ऊपर से मुस्कुरा भी रहे थे। कोरोना के बारे में सोच के कोई मुस्कुराता है भला ? पगला गए हो क्या? “
मैं यह सुनके डर से काँप गया। कम्बखत कहीं मेरा पोल न खुल जाए , नहीं तो जूते पड़ेंगे ।
बोला - "तुम भी अजीब हो, सपने में तो आदमी कुछ भी देखता है। मैं तो ये देख कर मुस्कुरा रहा था कि कोरोना हमारे परिवार का कुछ नहीं बिगाड़ पायेगा। हम लोग सुरक्षित रहेंगे। "
बीवी ने कौतुहूल भरी दृष्टि से मेरी तरफ देखा और मुँह बनाके चलती बनी। उसे मेरी बात पे विश्वास नहीं हुआ।
जिस दिन पहली बार मैंने कोरोना के बारे में सुना, मेरे दिल में एक अजीब मीठी सी हलचल हुई।
ऐसा लगा कि जैसे इक ठंडी गुलाबी हवा का झोंका मेरे अतीत से आया और मुझे आसमान में उड़ा कर ले गया।
कोरोना वायरस ने वैसे तो पूरी दुनिया में खौफ का माहौल पैदा कर दिया, पर उसी वायरस ने मेरी बेरंग ज़िन्दगी में रंग भी घोल दिया।
एक तरफ तो उसने मौत का तांडव मचाया, पर दूसरी तरफ उसने मुझे नयी ज़िन्दगी दी।
वाह कोरोना वाह !
आप भी सोच रहे होंगे कि ये आदमी क्या वाहियात बातें कर रहा है। भला ये इंसान का दुश्मन चीनी वायरस भी कभी किसी को ख़ुशी दे सकता है? असंभव!
तो भाइयों, मैं आपको अब ये बता ही देता हूँ कि कोरोना का नाम सुनके मैं इतना एक्साइटेड क्यों हो गया।
दरअसल कोरोना वायरस ने मुझे मेरे कॉलेज के दिनों की प्रेयसी की याद दिला दी।
वो एक निहायत ही खूबसूरत बंगाली लड़की थी जिससे मैंने बेहद प्यार किया था।
नाम था उसका कोरोना , कोरोना मित्रा।
लखनऊ यूनिवर्सिटी में बीएससी कोर्स का पहला दिन था।
उसी दिन पहली बार उस हसीन परी ने मेरी ज़िन्दगी में कदम रखा।
शायद लाइफ में पहली मर्तबा मैंने किसी बंगाली लड़की को देखा था।
नीले रंग की स्लीवलेस चुस्त सलवार कमीज , खुले लम्बे बाल, तीखे नैन नक्श , बड़े गुलाबी मुस्कुराते होठों पे हलकी सी लिपस्टिक और मॉडल जैसी चाल - लगता था कि मैडम पहले ही दिन यूनिवर्सिटी में भूकंप करवाने का इरादा करके आयी थीं।
और भूकंप आया भी।
फर्स्ट ईयर के जितने लुच्चे लफंगे थे , उन सबकी नज़रें मेरी प्यारी कोरोना पर टिक गयीं। किसी ने उसे देख के सिसकियाँ भरी , किसी ने दबी आवाज़ में सीटी बजायी और कुछ एक ने तो आँखें भी मार दी|
"क्या आइटम है गुरु !" मेरे एक मित्र ने टिप्पणीं की।
मुझे उसकी बातें बेहद अभद्र लगीं और मैं गुस्से से आग बबुला हो गया।
मैंने उससे कहा - "साले तुम लखनऊ के लौंडो में कोई तहज़ीब है ही नहीं ! तुम लोगों का कोई लेवल, कोई स्टैण्डर्ड नहीं है ! लड़कियों की रेस्पेक्ट करना तो तुम गवारों को कभी आया नहीं। एक मॉडर्न लड़की क्या देखी , लगे बत्तीसी दिखाने !"
मेरे मित्र की आँखें फटी की फटी रह गयीं। उसे यकीन नहीं आया कि प्रखर अग्रवाल ने ऐसी बात कही।
उसने धीमी आवाज़ में बोला - " वाह बेटे ! तुम्हारा लेवल और स्टैण्डर्ड कहा था जब जूनियर कॉलेज में तुमने नेहा दूबे को छेड़ा था जिसके बाद उसके भाई ने तुम्हारी कुटाई की थी ?"
मैंने उसके व्यक्तव्य को तुरंत डिसमिस करते हुए कहा - "पास्ट इस पास्ट। दिस इस अ न्यू प्रखर अग्रवाल। "
उस दिन मुझे अपनी ज़िन्दगी का ध्येय मिल गया।
मैंने ये डिसाइड कर लिया कि भगवान ने कोरोना को धरती पर इसीलिए पैदा किया था ताकि उसका मिलन प्रखर नाम के देव तुल्य, अति गुणी युवक से हो सके।
फिर अगले दिन से मैंने मिशन कोरोना पे पूरी लगन से काम करना शुरू कर दिया।
पता किया कि उसके पापा रेलवेज़ में एक उच्च अधिकारी थे और उनका तबादला कुछ दिन पहले कलकत्ते से लखनऊ हुआ था। इसीलिए कोरोना ने लखनऊ यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया था।
लड़की का फैमिली बैकग्राउंड बहुत स्ट्रांग था। अच्छी बात ये थी कि उसका कोई भाई नहीं था। एक बड़ी बहन थी जो कलकत्ते में पढ़ाई कर रही थी।
वैसे तो मेरी पढ़ाई एक फ़टीचर स्कूल से हुई थी , पर मुझे बचपन से ही अंग्रेजी पढ़ने का शौक़ था। मेरे मामा इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में अंग्रेजी के प्रोफेसर हैं। उनका कुछ प्रभाव उनके नालायक भांजे पर जरूर पड़ गया था, इसीलिये मेरी इंग्लिश अच्छी थी। मैंने इस बात का भरपूर लाभ उठाने का निर्णय किया।
एक दिन मौके का फायदा उठाकर मैं कोरोना के पास गया और खुद को इंट्रोड्यूस किया।
थोड़ा डरते और झिझकते हुए मैंने कहा - "आई एम प्रखर अग्रवाल, योर क्लासमेट। वुड लाईक टु नो मोर अबाउट अ ब्यूटीफुल गर्ल लाइक यू !”
मेरे सुखद आश्चर्य की सीमा नहीं रही जब उसने मुस्कुराते हुए मुझसे हाथ मिलाया।
मेरा तीर निशाने पे लगा था।
वो मेरी इंग्लिश से इम्प्रेस्ड हुई। उसे लगा कि क्लास में कोई उसके लेवल का है।
बस फिर क्या था ! मेरे प्यार की गाड़ी ने ज़िन्दगी की पटरी पर रफ़्तार पकड़ ली !
फर्स्ट ईयर के दिन बीतने शुरू हुए और हमारा प्यार धीरे-धीरे परवान चढ़ने लगा।
कॉलेज में हम एक दूसरे से कभी कैंटीन में और कभी गार्डन में मिलने लगे।
वो स्कूटी से यूनिवर्सिटी आती थी और मैं सिटी बस से।
वो हर दिन नए कपड़े पहनती थी और मैं २ जोड़ी में ही गुजारा करता था।
उसके शरीर से मादक परफ्यूम की खुशबू आती थी और मैं पसीने में नहाया रहता था।
पहले कुछ दिन बहुत इंफीरियरिटी काम्प्लेक्स में बीतें।
वो एक बड़े बाप की बेटी थी जो कैसरबाग़ में आलिशान सरकारी बंगले में रहती थी और मैं एक साड़ी बेचने वाले दुकानदार का बेटा था जो डालीगंज की एक सँकरी गली के एक छोटे से मकान में रहता था।
परन्तु कोरोना भी क्या लड़की थी !
उसके मन में कभी भी हमारे सोशल स्टेटस के अंतर का विचार नहीं आया।
जैसे-जैसे मैं उसे और जानने लगा , वैसे-वैसे मैं उसका फैन होते गया।
क्या क्लास था उसका! क्या टेस्ट था !
पूरी तरह खुले विचार की स्वछन्द नवयौवना थी वो।
वो एक बेफिक्र पक्षी की तरह थी जिसे बस अनंत आसमान में उड़ना था।
ज़िन्दगी को कैसे जीना चाहिए , कोई कोरोना से सीखे।
हमारे शौक और पसंद एक दूसरे से काफी मिलते थें। उसे अंग्रेजी कविता और साहित्य में गहन रूचि थी।
हम लोग क्लास बंक करके कभी दिलकुशा गार्डन, तो कभी सिकन्दरबाग़, तो कभी कुकरैल पार्क चले जाते थे। वहाँ हरे भरे बगीचों में कोई पेड़ के नीचे बैठ जाते थे और घंटों शेकस्पिअर , कीट्स और मिल्टन की पुस्तकों से कोई कविता या अध्याय चुन कर उसपे चर्चा करते थें। वाह , उन महान रचनाकारों की रचनाओं में कितना प्रेम, कितना रोमांस, और कितना दर्द छिपा रहता था। हम दोनों उनकी बनाई शब्दों की दुनिया में ऐसे खो जाते थे कि समय का पता ही नहीं चलता था।
एक दिन उसने मुझसे कहा - "प्रखर , मेरी हिंदी अच्छी नहीं है। मेरी बांग्ला, हिंदी पर हावी हो जाती है। मैं तुम्हें प्रोखोर बोल देती हूँ। प्लीज मुझे हिंदी या उर्दू सिखाओ ना। मैंने ग़ालिब का नाम बहुत सुना है। तुम मुझे ग़ालिब पढ़ाओ ना। "
मैंने उससे कहा - "कोरोना ,तुम्हारा बंगाली उच्चारण मुझे बहुत अच्छा लगता है। तुम्हारा बंगाली होना तुम्हें कितना आकर्षक बनाता है , यह तुम्हें नहीं मालूम।“
खैर, फिर मैंने ग़ालिब की शायरियों की किताब खरीदी और कुछ ही दिनों में मैं जूनियर ग़ालिब हो गया।
दोस्तों पे इम्प्रेशन मारने के लिए बात बात पर ग़ालिब की कुछ लाईनें बोलना मेरी आदत हो गयी।
जैसे -
“मेहरबां होके बुला लो मुझे चाहो जिस वक़्त
मैं गया वक़्त नहीं हूँ कि फ़िर आ भी नहीं सकूँ।”
और –
“ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता
अगर और जीते रहते यही इंतज़ार होता।
तेरे वादे पर जिए हम तो ये जान झूठ जाना
कि खुशी से मर न जाते ग़र ऐतबार होता।“
मैं कोरोना का ग़ालिबी गुरु बन गया और उसे उर्दू शायरी की शिक्षा प्रदान करने लगा।
कोरोना कमाल की स्टूडेंट निकली। कुछ ही हफ़्तों की तालीम के बाद उसे ग़ालिब की शायरियों की गहन समझ आ गयी , और वो मुझे ही करेक्ट करने लगी।
और जनाब जहाँ ग़ालिब हों , वहां जगजीत सिंह कैसे पीछे रह सकते हैं?
सेकंड ईयर आते आते हम दोनों जगजीत सिंह जी के फैन हो गए।
यूनिवर्सिटी में हमारा नाम पेअर में लिया जाने लगा था।
जैसा लैला - मजनू ,सोहनी- महिवाल , वैसे ही कोरोना - प्रखर।
हम दोनों का क्लास में एक ही बेंच पे साथ चिपक के बैठना , आपस में खुसुर फुसुर करना और दिन भर रोमांटिक लहजे में मुस्कुराना , ये यूनिवर्सिटी के लड़के , लड़कियों और शिक्षकों के लिए अब आम बात हो गयी थी। वो समझ गए थे की ये दोनों पंछी पृथ्वी के धरातल पर नहीं हैं , अपितु प्रेम और यौवन के आसमान में उड़ रहे हैं|
हद तो तब हो गयी जब कुछ लेक्चररस ने रोल कॉल करते वक़्त कोरोना के बाद सीधा मेरा नाम लेना शुरू कर दिया।
"कोरोना मित्रा" ... "प्रखर अग्रवाल "... "कुमार ऋषभ ".... "कुसुम तिवारी"....
और कुछ एक टीचर्स ने तो मेरा नाम बुलाना ही बंद कर दिया।
उनके लिए कोरोना "प्रेसेंट" मतलब प्रखर भी "प्रेसेंट", और अगर कोरोना "एब्सेंट" मतलब प्रखर भी.... काहे को अलग से नाम लेके अपना टाइम वेस्ट करें?
इधर मेरा लाइफस्टाइल भी बदल रहा था।
अब मैं फटीचर सिटी बस न लेके कोरोना के स्कूटी से आवागमन करने लगा।
वो मेरे डालीगंज वाली गली से कुछ दूर आके मुझे पिकअप करने लगी। मैं अनऑफिशियली उसकी स्कूटी का जॉइंट ओनर बन गया था। मैं ही उसकी स्कूटी ज्यादा चलाता था। उसे पीछे वाली सीट पर बैठना अच्छा लगता था। उफ़ मुझे आज भी याद है , जब उसके लम्बे काले बाल हवा में लहराते हुए मेरे चेहरे को छूते थे तो मुझे कैसी अप्रतिम आनंद की अनुभूति होती थी!
हम दोनों ने लखनऊ का चप्पा चप्पा घूमा।
शाम को हज़रतगंज में "गंजिंग" करना, “लव लेन” में जवान लड़के लड़कियों की भीड़ में शॉपिंग करने की एक्टिंग करना, मोती महल में पंद्रह रूपये में डोसा खाना , रॉयल कैफ़े के बाहर स्वादिष्ट बास्केट चाट के मजे लेना , और अपोलो बेकरी की पेस्ट्री का लुत्फ़ उठाना , हमारी नियमित दिनचर्या में शामिल हो गया था।
कभी कबार दोनों साहू और प्रतिभा में पिक्चर भी देख लिया करते थे।
फाइनल ईयर आते आते हम दोनों को गिटार और गायकी का शौक चढ़ा।
कोरोना के एक कज़िन ने उसे अमेरिका से एक पोर्टेबल सी-डी प्लेयर गिफ्ट की, जिसके बाद हम दोनों किशोर, रफ़ी और बरमन दा के दीवाने हो गए।
समय कैसे बीतता गया , पता ही नहीं चला।
फिर एक दिन, फाइनल ईयर के फाइनल एग्ज़ाम से पंद्रह दिन पहले , कोरोना ने मुझे एक ऐसी खबर दी, जिसने मेरे ह्रदय के टुकड़े टुकड़े कर दिए ! मेरी आँखों के सामने अँधेरा छा गया ! ऐसा लगा कि जैसा सांस अटक गयी हो।
उसने कहा कि उसके पापा का तबादला कलकत्ता हो गया है, और इसीलिए फाइनल एग्ज़ाम के बाद उसे अपने पापा के साथ वापस अपने शहर जाना पड़ेगा।
मेरी तो दुनिया ही उजड़ गयी। वो सारे सपने जो मैंने अपने मन में संजोये थे ,एक सेकंड में हवा हो गए !
परीक्षा के दो दिन पहले, मेरे एक कमीने दोस्त ने (सच्चे दोस्त कमीने ही होते हैं ) मुझे शराब पिलाई।
उसने बोला - "प्रखर बेटा, अब कुछ ही दिन बचे हैं। कोरोना को "आई लव यू" बोल दे। अब नहीं तो कभी नहीं!"
बारिश की रात थी। मैंने शराब के नशे में पीसीओ से कोरोना को कॉल किया और उसे अपोलो बेकरी पे बुलाया। आंधी और तूफ़ान ने पूरे शहर में तबाही मचाई हुई थी , पर वो तबाही मेरे दिल के ज़लज़ले के सामने कुछ भी नहीं थी। बारिश में बीच सड़क पर खड़े होकर ,सलमान खान की तरह, मैं अपनी कोरोना का इंतज़ार करता रहा।
वो बंगाली सुंदरी अपनी स्कूटी पे भींगते हुए आयी और मुझे देखते ही स्कूटी पार्क करके, मेरी तरफ दौड़ी। और फिर माधुरी दीक्षित की तरह बारिश के पानी में सराबोर होते हुए उसने मुझे अपने गले से लगा लिया!
मैंने उसकी तड़पती आँखों में झाँक कर कहा - "आई लव यू कोरोना !"
अचानक बिजली की गड़गड़ाहट हुई और कोरोना ने अपने सुलगते होठों को मेरे होठों पर रख दिया। वो मेरी लाइफ का पहला किस था। हम दोनों पागल प्रेमियों की तरह एक दूसरे को चूमने लगे। हमारे आँखों के आँसू बारिश के पानी के साथ मिल के बह गए।
बैकग्राउंड में कहीं दूर रेडियो पे "मोहरा" का गाना बज रहा था –
"सुबह से लेकर शाम तक …. शाम से लेकर रात तक....
रात से लेकर सुबह तक…. सुबह से फ़िर शाम तक...
मुझे प्यार करो... मुझे प्यार करो.... "
फाइनल ईयर की परीक्षाएं ख़तम हुईं।
हम दोनों ने कभी न जुदा होने की कसमें खायीं। ये तय किया कि लॉन्ग डिस्टेंस रिलेशनशिप जारी रखेंगे और मेरे सेटल होने के बाद शादी कर लेंगे ।
पर जनाब, ख्वाब और ज़िन्दगी में तो सदियों से ज़मीन और आसमान का अंतर चला आया है।
कोरोना के जाने के बाद ज़िन्दगी की कहानी ने कुछ और ही मोड़ ले लिया, और धीरे धीरे कोरोना मेरे अतीत के पन्नो में धूमिल होते हुए पूरी ही गुम हो गयी।
लॉक-डाउन के तीसरे हफ्ते का पांचवा दिन।
शाम का वक़्त।
हाथ में बियर की बोतल, और मैं बालकनी में।
नज़र व्हाट्सएप्प पे गयी।
लखनऊ यूनिवर्सिटी के कई सारे ग्रूप्स थे।
मसलन -
1 - "लखनऊ यूनिवर्सिटी बीएससी 1999" (मेंबर संख्या - 80 )
2 - "लखनऊ यूनिवर्सिटी बीएससी 99 बॉयज" (मेंबर संख्या - 55 )
3 - "लखनऊ यूनिवर्सिटी बीएससी 99 के कमीने" (मेंबर संख्या - 20 )
4 - "लखनऊ यूनिवर्सिटी बीएससी 99 के हरामी" (मेंबर संख्या - 7)
प्रखर अग्रवाल, यानी मैं, इन सभी व्हाट्सएप्प ग्रूप्स का माननीय सदस्य था।
मैंने हरामी ग्रूप में मैसेज डाला - "कोरोना मित्रा किधर है?"
कुछेक पैग़ाम तो साठ सेकण्ड के भीतर ही आ गए –
“कोरोना ने कोरोना की याद दिला दी ?"
"क्यों बे, बुढ़ापे में ठरक चढ़ी है ?
"एक्स्ट्रा मैरिटल ?"
"डिवोर्स हो गया क्या ? लॉक-डाउन में तो साला ये होना ही था। "
"लगता है बीवी घर के कामों में पेले रही है, इसीलिए जनाब को प्रेमिका की याद आ रही है। "
मैंने कहा -"अबे खजूरों , सीरियस हूँ ! तनिक मदद करो!"
ऐसा नहीं था कि इतने सालों में मैंने कोरोना को खोजने की कोशिश नहीं की। ये पता था की वो शादी करके अमेरिका चली गयी थी। पर वो लड़की हमेशा सोशल मीडिया से दूर रही , पता नहीं क्यों? वो न कभी ऑरकुट के ज़माने में सामने आयी , और ना ही फेसबुक के ज़माने में। लखनऊ यूनिवर्सिटी के व्हाट्सएप्प ग्रुप में भी नहीं थी, और लिंक्ड-इन पे भी नहीं। सालों से उसका चेहरा देखने के लिए तरस गया था।
अगले दिन एक परम अजीज़ कमीने मित्र ने उसका मोबाइल नंबर मैसेज किया और साथ में लिखा -
"मैडम बैंगलोर में हैं आजकल। ये ले उसका मोबाइल नंबर। जा राजा , जी ले अपनी ज़िन्दगी। पर बेटा , कहानी
पे अपडेट देना मत भूलना। इतना हक़ बनता है हमारा !"
कोरोना का नंबर देख कर दिल की धड़कन रुक गयी। ऐसा लगा कि समय इक्कीस वर्ष पीछे चला गया हो। मन में घबराहट हुई , संदेह उत्त्पन्न हुआ। क्या उसको इतने सालों बाद कांटेक्ट करना सही होगा? आखिर शादी शुदा है। कहीं गुस्सा गयी तो? मेरे मन में चोर था, इसका ये मतलब तो नहीं कि उसके मन में भी हो। हो सकता है कि वो पूरी तरह से बदल गयी हो ? इक्कीस साल बदलने के लिए बहुत होते हैं।
पर साला मैं भी क्या करूँ ?
मोदी जी के लॉक-डाउन ने तो लाइफ की वाट लगा दी है। पता नहीं क्यों, मोदी जी भी हमारे जैसे भक्तों की ही मारने में क्यों लगे रहते हैं?
लॉक-डाउन ने जीवन के कुछ कटु सत्यों को उजागर कर दिया था।
बीवी अपने पति को सारा दिन घर में बैठे नहीं देख सकती है। ये उसकी फ्रीडम पे कुठाराघात है। अब ना वो अपने ससुराल वालों की चुगली अपनी माँ से कर सकती है , ना वो दिन भर अपनी मनपसंद के बे-सिरपैर वाले टीवी सीरियल देख सकती है , और न ही अपने हिसाब से बच्चों का लालन पोषण कर सकती है। अब हर जगह उसको अपने पति की इंटरफेरेंस का सामना करना पड़ता है।
शादी के इतने सालों बाद मुझे स्वीटी के बारे में नयी बातें पता चल रही हैं ।
पत्नीश्री दोपहर का भोजन करने के बाद ढाई घंटे चेंप के सोती हैं । मुझसे पहले बोलती थी की मैं तो दोपहर में राजू बेटे को पढ़ाती हूँ। अब पता चल रहा है कि राजू स्कूल में माशाल्लाह इतनी अच्छी परफॉरमेंस कैसे दे रहे हैं।
लॉक-डाउन से पहले मुझे अपने दोनों बच्चे बेहद प्यारे और मासूम लगते थे। अब पता चल रहा है कि ये दोनों मेरे भी बाप हैं। दोनों लड़के दिन भर या तो एक दूसरे से मारा पीटी करते हैं और रोते हैं, या फिर मोबाइल पे गेम्स खेलते हैं।
मैं और मेरे दोस्त ऑफिस में अपना समय बखूबी एन्जॉय करते थे। हम कॉर्पोरेट पॉलिटिक्स में एक्सपर्ट लोग हैं , बस आधा टाइम काम करते थें, बाकी टाइम अंग्रेजी के बड़े-बड़े शब्दों का इस्तेमाल करके एम्प्लोयी को मोटीवेट करते थें। बोल बचन, बस। अपनी इंडस्ट्री बोल बचन पे ही तो चलती है।
ऑफिस की सुन्दर लड़कियों को ताड़ना और उनके साथ कभी- कभी फ़्लर्ट करना, ये हमारा जन्म सिद्ध अधिकार था। फ्राइडे तो हमारे लिए स्वर्ग से कम नहीं होता था, इस दिन तो बस पब और दारु !
लॉक-डाउन ने कम्बख्त मेरा सारा एंटरटेनमेंट ही चौपट कर दिया।
कोरोना का मोबाइल नंबर मिलने के दो दिन बाद, रात ग्यारह बजे , मैंने उसका नंबर डायल किया।
मेरी साँसे थमी हुई थी।
फ़ोन की घंटी बजी।
घंटी के पांच बार बजने के बाद एक सोयी हुई नाज़ुक सी आवाज़ ने कहा - "हलो?"
मेरे गले से आवाज़ नहीं निकली। कुछ सेकंड के लिए सब कुछ थम गया।
मैंने अपनी कोरोना की आवाज़ को पहचान लिया।
मेरी आँखें डबडबा गयीं।
उसने फिर से कहा -"हलो ?"
मैं जैसे नींद से जागा। धीमी दबी आवाज़ में बोला - "कोरोना, मैं प्रखर बोल रहा हूँ। पहचाना ?"
कुछ पल के लिए सन्नाटा छा गया।
लाइन के दूसरी तरफ एक विस्मित सी खामोशी थी ।
और फिर अचानक वो दबी आवाज़ में चीखी - "प्रोखोर , तुम!!!!"
"प्रोखोर " - इस शब्द ने मेरी जान में जान डाल दी। मेरी आत्मा को ठंडक पहुंची।
"आई कांट बिलीव दिस !" वो अचंभित होकर बोली। "इतने सालों बाद ! तुम्हें अभी भी मेरी याद है? माय गॉड !"
"मैं तो तुम्हें रोज़ याद करता हूँ कोरोना। तुम्हीं मुझे भूल गयी। " मैंने इमोशनल होकर कहा।
"हम्म ..... ।" उसने थोड़ी देर रुक कर कहा। "मैं भी तुम्हें नहीं भूली हूँ प्रोखोर।"
" क्या हम वीडियो कॉल कर सकते हैं ?" मैंने पूछा। मैं कोरोना का चेहरा देखने को व्याकुल हो रहा था।
“नहीं ,आज नहीं। कल रात में कॉल करना।" उसने कहा।
"ठीक है। तुम रात में कितने बजे तक जग सकती हो?" मैंने पूछा।
कोरोना हंसी। बोली - "मैं निशाचर हूँ , रात भर जग सकती हूँ।"
मेरा दिमाग कंप्यूटर से भी तेज़ चल रहा था। "तुम्हारे पास लैपटॉप है ? क्या मैं ज़ूम इन्वाइट भेजूँ ताकि हम लोग बड़े स्क्रीन पर बात कर सकें? "
"हाँ ठीक है प्रोखोर। "
मैंने कुछ सोचते हुए कहा - "हम कल रात में दो बजे बात करेंगे। ठीक है ?"
कोरोना हँसते हुए बोली - "ठीक है, मैं तैयार रहूंगी। "
उस रात मैं सो नहीं पाया। मेरे मन में हज़ारों बातें दौड़ती रहीं।
मैं प्लानिंग कर रहा था कि कैसे बिना पकड़े गए कोरोना से बात करूँ। आज तो बाथरूम से कॉल कर लिया, पर वीडियो कांफ्रेंस बाथरूम से कैसे करूँगा? एक बेडरूम में तो स्वीटी पाँव पसार कर सोती है , दूसरे बैडरूम में मेरे दोनों नालायक लड़के देर रात तक धमा चौकड़ी करते हैं। ड्राइंग रूम से बात करूँगा तो पकड़ा जाऊंगा। मुझे बैडरूम ही चाहिए जिसका मैं दरवाज़ा बंद कर सकूँ।
"हाय रे कोरोना , तुमसे बिछुड़ कर कहाँ मैं इन निकम्मे लोगों के बीच में फँस गया!"
अगली सुबह मैंने स्वीटी पर पासा फेंका।
"आज रात में मेरी अमेरिका वाली टीम से मीटिंग होने वाली है। बिज़नेस कॉन्टिनुइटी प्लान डिसकस करना है। रात में दो बजे से चार बजे तक कॉल चलेगी। और ऐसा अगले दो हफ्ते तक चलेगा। इसीलिए मुझे राजू-संजू का बेडरूम चाहिए।"
ये सुनते ही घर में भूचाल आ गया। स्वीटी और उसके दोनों लड़कों ने साफ़ मना कर दिया।
"आप ड्राइंग रूम में मीटिंग कर लो, " बच्चों ने कहा।
मोटी ने तंज कसा - "ऐसे ही करना था तो थ्री बेडरूम हॉल किचन वाला फ्लैट क्यों नहीं ख़रीदा ?मैं तो बोलती रह गयी थी। पर तुम न चाहते थे कि मेरे माँ बाप आकर मेरे साथ रह सकें। तुम्हारी चतुराई मैं खूब समझती हूँ। लो अब भुगतो। कोई अपने कमरे से नहीं हिलेगा , कहे देती हूँ!"
पर प्रखर अग्रवाल ने भी कोई कच्ची गोलियां नहीं खेल रखीं थीं।
मैंने भी अपनी वाकपटुता से मोटी को कन्विंस कर लिया कि ये बहुत खतरनाक समय है। अगर मैंने थोड़ी भी गड़बड़ की तो नौकरी जाती रहेगी। पहले ज्यादा सैलरी वाले सीनियर लोगों को ही कंपनी से निकाला जाता है। वाई -फाई बच्चों के कमरे में है ,इसीलिए वहीं से मीटिंग लेनी पड़ेगी ताकि बैंडविड्थ अच्छी मिले।
स्वीटी रानी ये बात सुनकर डर गयीं और उसने तुरंत हाँ कर दिया।
रात के दो बजे, जब दोनों बच्चे अपनी माँ के साथ हमारे बेडरूम में गहन निद्रा में सो रहे थे, मैं दबे पाँव अपना लैपटॉप लेकर बच्चों के कमरे में गया, दरवाज़े की कुण्डी लगायी और कोरोना को वीडियो कॉल किया।
कुछ ही पलों में कोरोना का मुस्कुराता हुआ चेहरा मेरे स्क्रीन पर था।
मैं उसे देख कर अवाक रह गया !
एकदम सन्न !
एकटक होकर उसे देखता रहा !
उसके चेहरे की एक-एक रेखाओं को जैसे आँखों से पीता रहा !
वो मेरी अचंभित सूरत देख कर मुस्कुरायी , और फिर खिलखिला कर हँसने लगी!
"क्या हुआ प्रोखोर ,मुझे देख कर इतने शॉक्ड क्यों लग रहे हो? ठीक हो न ?"
मैं सम्मोहन की स्थिति में बुदबुदाया -"प्रोखोर नहीं ,प्रखर, कोरोना ! "
वो फिर से हंसी -"हाँ तुम मुझे सिखाते ही रह गए, पर मैं कभी सीख नहीं पायी प्रखर ! इस बार ठीक है ?"
कोरोना को इक्कीस साल बाद देख कर मैं विस्मित रह गया।
वो कली से फूल बन चुकी थी।
नयन और नक्श तो वैसे ही तीख़े थे, पर चेहरा भर चुका था।
पहले दुबली हुआ करती थी, अब सुडौल और स्वस्थ लग रही थी।
अपनी बड़ी आँखों के नीचे उसने काजल लगाया हुआ था।
होठों पर गुलाबी लिपस्टिक लगी थी।
माथे पर काले रंग की सर्प बिंदी थी।
उसके लम्बे काले घने बाल खुले हुए थे।
उसने पीकॉक ब्लू रंग की साड़ी और उसी रंग का स्लीवलेस ब्लाउज पहना हुआ था।
वो एक लड़की से स्त्री बन चुकी थी।
"अब कुछ बोलो भी, या फिर ऐसे ही मुँह खोल कर मुझे देखते रहोगे?"
"क्या बोलूँ कोरोना , तुमने मुझे बोलने लायक ही नहीं छोड़ा !"
"लो ! अभी पूरी दुनिया मेरे बारे में ही बातें कर रही है, और तुम कुछ बोल ही नहीं पा रहे हो प्रखर !ऐसा कैसे हो सकता है?"
मैंने ठंडी आहें भरते हुए कहा - "कोरोना तुम निहायत ही खूबसूरत और सेक्सी लग रही हो।"
कोरोना खिलखिला का हँस पड़ी। बोली - "एक शादी शुदा औरत पर लाइन मार रहे हो। सावधान रहो। "
मैंने सीरियस होते हुआ कहा - "मेरे मन में जो है, वही कह रहा हूँ। "
"अच्छा किया प्रखर। जो मन में है वही बोलना चाहिए। तुम्हीं मेरा पहला प्यार हो। इस बात को तो प्रकृति भी झुठला नहीं सकती है।" कोरोना मुस्कुराते हुए बोली।
मुझे उसकी स्पष्टता और निर्भीकता पर आश्चर्य हुआ। सही में मॉडर्न स्वच्छंद ख्यालों की लड़की थी वो।
"तुम थोड़े मोटे हो गए हो प्रखर , जिम - शिम नहीं जाते क्या?"
मुझे खुद पे शर्म आ गयी। मैंने बहाना बनाया - "काम का प्रेशर कुछ ज्यादा ही रहता है आजकल।"
"अच्छा ये बताओ, तुम्हारी वाइफ स्वीटी और बच्चे राजू संजू कैसे हैं। "
मैं उसकी ये बात सुनकर झटका खा गया। "तुम्हें उनके बारे में कैसे पता कोरोना ?"
"मुझे सब पता है प्रखर। मैं ऑनलाइन नहीं हूँ तो क्या हुआ,प र सबकी खबर रखती हूँ। तुम्हारी फॅमिली की पिछले साल की ऑस्ट्रेलिया वेकेशन की फोटो भी मुझे बहुत अच्छी लगी।"
मुझे कोरोना की ये बात सुनकर निराशा हुई।
"जब तुम्हें मेरे बारे में सब पता था कोरोना , तो तुमने मुझे कभी कॉल क्यों नहीं किया? कभी कोशिश भी नहीं की मुझसे मिलने की ?"
कोरोना ने मुस्कुराते हुए अपना सर झुका लिया। मैं समझ गया कि वो मेरे इस प्रश्न का जवाब नहीं देना चाहती है।
"तुम्हारे परिवार मैं कौन- कौन है?" मैंने बातों का सिलसिला आगे बढ़ाने के लिए कहा।
“मेरे एक पति हैं और एक ग्यारह साल की बेटी है।
पति जिनेवा गए हुए थे। कोरोना वाइरस की वजह से वहीं फँस गए हैं ।
मैं बेटी के साथ घर में अकेली हूँ अभी।“
"साला वही फंसा रहे ज़िन्दगी भर। " मैंने अपने मन में सोचा।
ऊपर से सहानुभूति प्रकट करते हुए कहा - "डू नॉट वरी। वो आ जायेंगे। "
“पापा मम्मी कैसे हैं ? कहाँ हैं ? और तुम्हारी दीदी?”
“पापा रिटायर्ड हो चुके हैं। मम्मी के साथ कोलकाता में हैं। अब एज्ड हो रहे हैं ,थोड़े बीमार रहते हैं। दीदी जीजा यहीं बैंगलोर में हैं। उनके दो बच्चे हैं।“
फिर कुछ देर बाद हम दोनों ने लखनऊ में बिताये हुए उन हसीन दिनों की यादों की चर्चा शुरू कर दी। इसमें अगले तीन घंटे कैसे निकल गए , हमें पता ही नहीं चला।
अगला दिन बेहद ख़ूबसूरत दिन था। मैं मुस्कुराते हुए अपने बिस्तर से ऐसे उठा जैसे कोई सुन्दर सपना देख कर उठता है। बड़े प्यार से बीवी और बच्चों को गुड मॉर्निंग बोला। तीनों ने शक की निगाह से मेरी तरफ देखा। इस आदमी को आज क्या हो गया है ? ये तो सुबह उठते ही गुर्राता है।
मैंने बड़े प्यार से बर्तन धोये, झाड़ू पोछा किया, और तरकारी भी काटी।
बच्चों को इत्मीनान से पढ़ाया। किसी को न डांटा , न थप्पड़ मारा। बस दिन भर मंद- मंद मुस्कुराता रहा।
आख़िरकार मेरी स्वीटी रानी से रहा नहीं गया। बोली - "तुम ठीक तो हो न ? लगता है कि कल रात की मीटिंग कुछ ज्यादा ही अच्छी रही।“
मैं तुरंत संभल गया। ना, किसी भी तरह से इस मोटी को शक नहीं होना चाहिए।
मैंने अपना मुँह गंभीर बनाते हुए कहा - "हां मीटिंग काफी अच्छी रही। मेरे प्रेजेंटेशन से अमेरिकन टीम खुश थी। मैंने बहुत मेहनत की थी। "
रात के दो बजे -
कोरोना मेरे लैपटॉप के स्क्रीन पे आयी।
उफ़, आज रात तो वो कहर ढा रही थी।
उसने जोधपुरी पिंक कलर की शिफॉन साड़ी और उसी कलर का स्लीवलेस ब्लाउज पहना था। कानो में थी डिज़ाइनर बालियां और होठों पर थी हलकी सी लिपस्टिक।
वो मादक अंदाज़ में मुस्कुरायी ,और बोली - "प्रखर , मैं आज बहुत रोमांटिक मूड में हूँ। तुम वो "तीसरी मंज़िल" वाला गाना गिटार पे सुनाओ ना , जो तुमने फाइनल ईयर में मुझे एक बार सुनाया था। "
मैंने भी दो गिलास व्हिस्की की मारी हुई थी।
अपनी लाल नशीली आँखों से मैंने उसकी तरफ देखा और बोला - "यस , व्हाई नॉट ,माय लव !"
मैं दूसरे कमरे से अपना गिटार उठाके लेते आया।
मेरा पास माइक वाला हैडफ़ोन था। मैंने उसे सर पे लगा लिया।
फिर धीरे से गिटार की स्ट्रिंग दबा कर ,मैंने अपनी आँखें बंद की, और शम्मी कपूर, मुहम्मद रफ़ी और आर.डी बर्मन की आत्माओं को अपने अंदर बुलाया।
और फिर मैंने गाना शुरू किया –
तुमने मुझे देखा…..
हो कर मेहरबान…..
रुक गयी ये ज़मीं….
थम गया आसमां….
जाने मन, जाने जाँ….
तुमने मुझे देखा….
हो कर मेहरबान….
रुक गयी ये ज़मीं….
थम गया आसमां….
जाने मन, जाने जाँ…
तुमने मुझे देखा….
गाने के ख़तम होने से पहले ही कोरोना की आँखों से अश्रुधारा बह निकली। मैं भी खुद को रोक नहीं पाया ,और गाते- गाते ही आँखों से आँसू बहाने लगा।
"आई स्टिल लव यू कोरोना।" मैंने अपने प्यार का फिर से इज़हार कर दिया।
कोरोना ने अपना सिर झुका लिया।
अपने आँसू पोछने के बाद , उसने मुझसे जो बात कही , वो इतनी गहरी थी ,कि मुझे ता-ज़िन्दगी याद रहेगी।
"जानते हो प्रखर ,हमारा प्यार अभी तक ज़िंदा क्यों है ? क्योंकि हमने उसे एक खूबसूरत मोड़ पे लाकर छोड़ दिया। हम दोनों सही मायने में एक दूसरे के दिलों से प्यार करते हैं। हमने अपने प्यार को वासना में तब्दील नहीं किया, इसीलिए हमारे प्यार में वो कशिश बाकी है। तुम मुझसे पूछ रहे थे ना, कि मैंने इतने सालों में तुमसे बात करने की कोशिश क्यों नहीं की? वो इसीलिए ,कि हमारा प्यार आजीवन बरक़रार रहे।"
कोरोना की इस बात ने मेरे दिल को छू लिया।
हम दोनों ना जाने कितनी देर तक एक दूसरे की आँखों में आँखें डाल कर देखते रहें।
ऐसा लग रहा था कि चारों तरफ प्यार की ख़ामोशी का एक सागर है जिसकी लहरें बिलकुल शांत हो गयी थीं।
अगली रात हम दोनों फिर मिले।
इस बार गाने की बारी कोरोना की थी।
मैंने गिटार पकड़ी। गाना उसे था ,और बजाना मुझे।
उसने "लव इन टोक्यो" का गाना शुरू किया -
मुझे तुम मिल गए हमदम सहारा हो तो ऐसा हो….
जिधर देखूँ उधर तुम हो नज़ारा हो तो ऐसा हो….
मुझे तुम मिल गए …
किसी का चाँद सा चेहरा नज़र से चूम लेती हूँ …..
ख़ुशी की इन्तहाँ ये है नशे में झूम लेती हूँ …..
हुई तक़दीर भी रोशन सितारा हो तो ऐसा हो…..
जिधर देखूँ उधर …
उधर दिल है इधर जाँ है अजब मुश्किल का सामाँ है …..
लबों पर मुस्कुराहट है मगर साँसों में तूफ़ाँ है …..
ये मैं जानूँ या तुम जानो इशारा हो तो ऐसा हो……
जिधर देखूँ उधर …
मैं उसकी आवाज़ सुन के हैरान रह गया। कोरोना एक बेहतरीन गायिका बन चुकी थी। इतना प्यार और दर्द था उसकी आवाज़ में , कि हम दोनों के आँसू फिर ना रुके।
हमारी रातें ऐसे ही बीतने लगीं।
कभी ग़ालिब, कभी ख़ामोशी....
कभी जगजीत, कभी ख़ामोशी....
कभी किशोर, कभी ख़ामोशी....
कभी लता, कभी ख़ामोशी....
मेरी तो तमन्ना थी की ये ऐसा स्वप्न हो जो कभी टूटे ही नहीं।
पर जनाब, सपने तो टूटने के लिए ही होते हैं।
एक रात, लॉक-डाउन के छठे हफ्ते में ,मैं ओवर कॉन्फिडेंस में बेडरूम के दरवाज़े की कुंडी लगाना भूल गया।
मैं शराब के नशे में किशोर कुमार का गाना कोरोना को सुना रहा था , कि अचानक मैंने महसूस किया कि लैपटॉप की स्क्रीन नीली हो गयी और मेरी कोरोना गायब हो गयी। ऐसा एकाएक क्यों हो गया भला?
मैं इस उधेड़बुन में लगा ही हुआ था , कि अचानक दो भारी हाथ मेरी पीठ पर धम्म से पड़े , और मैं दर्द से कराह उठा !
"तो यही मीटिंग रोज रात में चलती है ?"
स्वीटी, ताड़का का रूप लिए , गरज उठी !
"कौन थी वो चुड़ैल जिसके लिए तुम गाना गा रहे थे? जैसे ही उसने मुझे देखा, झट से स्क्रीन से गायब हो गयी!"
"वही मैं सोचूं कि रात में गिटार की आवाज़ कहाँ से आती है? कौन सी ऐसी मीटिंग है जिसमे गाना गा कर सुनाया जाता है? यही चल रहा है तुम्हारा बिज़नेस कॉन्टिनुइटी प्लान?"
और फिर रात भर मुझ पर लात और घूँसों की ऐसी बारिश हुई कि मैं दो हफ्ते तक बिस्तर से उठ ना सका।
हाय रे कोरोना , तुमने मुझे भी कहीं का नहीं छोड़ा !
कुछ दिनों के बाद जब मैं फिर से चलने फिरने लायक हो गया, तो एक थेथर आदमी की भाँति , मैंने कोरोना को व्हाट्सएप्प मैसेज किया -
"आई स्टिल लव यू कोरोना!"