Ashish Srivastava

Drama

4.9  

Ashish Srivastava

Drama

IIT वाली बेटी

IIT वाली बेटी

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सुधा ने घर का दरवाज़ा खोला, बड़ी मुश्किल से दोनों सूटकेस अंदर धकेला और फिर धम्म से सोफे पे बैठ गयी। उसने इधर उधर नज़र दौड़ाई ,देखा कि सब कुछ वैसा ही लग रहा है जैसे वो तीन महीने पहले छोड़ के गयी थी। बैंगलोर में अपनी बेटी के घर से लखनऊ के इंदिरा नगर वाले घर का सफर थकाऊ था। क्या हुआ अगर वो प्लेन से ही आयी थी।


प्लेन से ज्यादा तो मुई बैंगलोर की ट्रैफिक ने थका दिया। भगवान बचाये ऐसे शहर से। वो तो मौसम इतना अच्छा है वहाँ का कि वह इतने दिनों रुक जाती है, नहीं तो भला वो कोई शहर है रहने लायक़ ?टैक्सी से उतरते ही उसने पति परमेश्वर को कुछ ज़रूरी सामान लेने दुकान भेज दिया था।


'थोड़ी देर के लिए लेट जाती हूँ। ये तो अब दुकानदार से २ घंटे गप मार के ही आएंगे। इन्हे वक़्त की चिंता कहाँ रहती है। कुछ देर बाद चाय बनाऊंगी । '


सुधा सोफे पे लेट गयी और कुछ सोचने लगी,वो अपनी और अपनी बेटी की ज़िन्दगी से खुश नहीं थी। सोचा था की इनके रिटायरमेंट के बाद ज़िन्दगी आराम से कटेगी पर अवंतिका की सास के मरने के बाद तो लगता है उसकी ज़िन्दगी में आफत आ गयी।


बुढ़िया को इतनी जल्दी मरना था। खुद मर गयी और मेरी लाइफ चौपट कर गयी। खैर उसका भी क्या दोष। मौत कोई बोल के थोड़े ही आती है।


ये तो अवंतिका को समझना चाहिए की उसके माँ बाप अब बूढ़े हो चले हैं , उन्हें भी कुछ आराम चाहिए। अब अपनी बेटी को क्या कह सकते हैं।  सुधा मन ही मन खिन्न हो रही थी।


सुधा शुक्ला और उसके पति महेश शुक्ला को दो बच्चे थे। बेटा विनोद और बेटी अवंतिका दोनों मेधावी छात्र थे। विनोद REC सूरत से बी टेक करके US में सेटल्ड था और अवंतिका IIT मुंबई से पास करके बैंगलोर की एक स्टार्टअप कंपनी में सीनियर पोजीशन पे थी।


सुधा गहरी सांस लेते हुए अतीत में खो गयी।

एक वक़्त था जब सुधा अपने किसी रिश्तेदार से सीधे मुँह बात भी नहीं करती थी। इतना घमंड था उसको अपने बच्चों पे। कहाँ उसके बच्चे और कहाँ उसके अपने भाई-बहन और देवर-नंदों के बच्चे। कोई नहीं टिक सकता था उसके विनोद और अवंतिका के सामने।

विनोद और अवन्तिका में डेढ़ साल का ही अंतर था। विनोद का जब REC में हुआ था तो दोनों मिया बीवी फूले न समाये थे।  आखिर खानदान का पहला इंजीनियर था।  पर उसके बाद तो उसकी बेटी ने उनके नसीब में चार चाँद लगा दिए। पूरे लखनऊ में अकेली लड़की थी अवन्ति जिसका IIT में ५०० रैंक से ऊपर था। वह खानदान के पहली इंजीनियर लड़की निकली थी और वो भी IIT से।


शुक्ला परिवार की तो जैसे काया पलट हो गयी।  सुधा को इतना पक्का पता था की जैसे ढक बच्चे उसके रिश्तेदारी में हैं उनके बच्चों का रिकॉर्ड कोई नहीं तोड़ सकता था।  सब जल भुन के ख़ाक हो रहे होंगे।

वाह रे अवन्ति, सीना चौड़ा कर दिया था।

सुधा की इज़्ज़त मोहल्ले और खानदान में बढ़ गयी।  वो शुक्लाइन से Mrs शुक्ला हो गयी। पास पड़ोस की औरतें उसे घर पे आमंत्रित करने लगीं।  उसे किटी पार्टियों में बुलाया जाने लगा।  उसकी दोस्ती अब हाई फाई सोसाइटी में होने लगी।  Mrs मलकानी और Mrs रॉय तो जैसे उसकी सगी बहने हो गयी थीं।  उन्होंने सुधा को रोटरी क्लब का मेंबर बना लिया।


कुछ साल तो बहुत मौज में कटें।  सुधा और महेश अमेरिका भी रह के आ गए। पर भइया वक़्त का पहिया तो घूमता ही रहता है, आज परिस्थिति अलग है।


आज उसको अपने रिश्तेदार उसके मुकाबले अधिक सुखी नज़र आते हैं। निर्मला ने तो उसके बैंगलोर जाने से पहले उसपे तंज कसा था -

"क्यों दीदी , जा रही हो फिर से अपने नाती की केयरटेकर बनने ? अरे अवंतिका को बोलो की अपने बच्चे की देखभाल खुद करे। कब तक माँ बाप के भरोसे रहेगी?"


'हुंह , जलती है मुझसे ! अपने बच्चो ने तो कुछ किया नहीं, दोनों पढ़ाई में निरे गोबर थे। अब उसे अवंतिका की सफलता पे जलन होती है।


पर सुधा का दिल ही जानता था।

निर्मला आज के दिन उससे कही ज्यादा सुखी और खुश है। बेटा फार्मेसी की दूकान करता है जो कि अच्छा ख़ासा चलता है। शादी शुदा है और तीन बच्चे हैं। सब साथ ही एक घर में रहते हैं। बहू भी भगवान् की दया से अच्छी मिली है। जब भी निर्मला के घर जाओ तो पूरा घर ख़ुशी से चहकता रहता है।


उसकी बेटी बबली भी उससे ४ किलोमीटर दूर पे अपने ससुराल में रहती है। ससुर बिजली विभाग में जूनियर इंजीनियर हैं। खूब पैसा कमाया है। नौकर चाकर से भरा परिवार है। बेटा स्टेट बैंक में क्लर्क है और बाप के साथ ही रहता है। बबली को सर आँखों बिठाये रखते हैं वो लोग। बबली अच्छी अच्छी रेसेपी बना के यूट्यूब में पोस्ट करती रहती है और सारे रिश्तेदारों से व्हाट्सप्प पे वाह वाही लूटती है।


और एक सुधा की ज़िन्दगी है कि एकदम बेरंग।


बेटा ऐसा अमेरिका गया कि अब आने का नाम ही नहीं लेता | वहीं किसी कोरियन चिंकी से शादी कर ली।

हाय रे उसकी फूटी किस्मत।  ना बहु को हिंदी आती न सुधा को कोरियन। सुधा की अंग्रेजी भी ऐसी कि समझने वाले समझते रह जाएँ।


गनीमत से लड़की भारत में ही रह गयी|


पर क्या ज़िन्दगी है उसकी।


ज़िन्दगी को बस एक रेस बना लिया है।  दामाद महीने में २ हफ्ते विदेश में रहता है।  और बेटी सुबह से लेकर रात तक काम में घिसती रहती है।


पता नहीं इतने पैसे का करेंगे क्या ?


और बेचारा उनका नाती आरव, ६ साल का नन्हा बच्चा अपनी माँ की गोद में खेलने को तड़पता है।

सुधा और महेश की तो जैसे वहाँ परमानेंट नौकरी थी अपने नाती की देखभाल करने की।

बेचारी अवन्ति ने तो एक नौकरानी की थी आरव की देख भाल के लिए पर सुधा ने ही मना कर दिया। अब ये दिन आ गए कि मेरे नाती को नौकरानी पालेगी ?

अब दोनों मिया बीवी के पल्ले घर का काफी काम पड़ गया। यूँ तो अवन्ति ने नौकर चाकर की सारी सुविधा रखी थी।  पर सारा काम नौकर थोड़े ही कर सकते थे।

ऊपर से काम वाली बाई पूरी हरामज़ादी थी। महीने में दस दिन नागा करती थी।

जिस दिन नहीं आयी उस दिन सुधा की बैंड बजी।

अवनति के पापा को खानसामे(कुक) के हाथ का खाना रास नहीं आता था तो उसे भगाया गया।


अब खाना बनाने की ज़िम्मेदारी भी सुधा पे आ गयी। बेटी से तो एक रोटी भी ठीक से नहीं बनती थी। बेचारी try तो बहुत करती थी। पर जो उसके हाथ का बना हुआ खाना एक बार खा ले ,वो ज़िन्दगी भर खाना न खाये।

एक बार तो समधिन ने सुना ही दिया था - "बेटी IIT की हो इसका ये मतलब तो नहीं की वो किचेन का कोई काम ही नहीं कर पाए। "


बुढ़िया खुद कौन सा पकवान बनाती थी। रस्से वाली सब्जी में ऊपर से मसाला डाला करती थी नासपीटी।  मसाला पीसना तो उसे आया ही नही कभी।  और मेरी बेटी की शिकायत करती थी। खाना बनवाना था तो लाती कोई BA /MA पास। हम तो नहीं गए थे उसके द्वारे। खुद आयी थी रिश्ते के लिए गिड़गिड़ाते हुए। मुझे तो पहले भी रिश्ता बहुत नहीं जंचा था। कहाँ अवन्ति IIT मुंबई की, कहाँ विशाल IIT गुवाहाटी का। पर क्या करते बेटी अड़ गयी।


दोनों मिया बीवी की कुछ ख़ास सोशल लाइफ भी नहीं थी। कहते थे की सारे दोस्त US में सेटल्ड हैं और ऑफिस वालो से क्या दोस्ती करेंगे।


सोसाइटी तो बहुत अच्छी हाय फाय थी पर वहाँ रहने वाले भी उतने ही हाय फाय थे।


एक बार विशाल ने घर पे पार्टी की थी। राम राम कैसी कैसी बेशरम लड़किया अपने पतियों के साथ आयी थी। एक हरामज़ादी तो निक्कर पहन के ही आ गयी थी , और एक दूसरी ने तो इतना शराब पिया कि उसको घर पहुँचाना पड़ा।


सुधा का ध्यान घड़ी की तरफ गया। लो अब पांच बजने को आ गए। इनका अभी तक अता पता नहीं। चलो उठ के चाय बनाऊं। अच्छा किया जो बैंगलोर से चलते वक़्त दूध का एक पैकेट रख लिया था। सुधा धीरे धीरे चलते रसोई में गयी। कम्बख्त गठिया का दर्द भी ठीक नहीं होता। दूध बर्तन में रख के गैस चालू किया और फिर अपने खयालो में खो गयी।


बेटी को इतना पढ़ा के उसने गलती तो नहीं की ?

नारी का काम केवल नौकरी करना नहीं होता। उसे अपने बच्चे की,पति की और घर की पूरी देखभाल करनी होती है। रिश्तेदारी संभालना होता है।

देखो आज बबली और डिम्पी को सब लोग जानते है क्यूंकि वे घर खानदान की सारे रस्मो रिवाज़ में उपस्थित रहती हैं। घर की कोई शादी नहीं छोड़ती हैं दोनों।

पर अवन्ति को तो लोग जैसे भूलते जा रहे हैं।  कोई उसका हाल चाल भी अब नहीं पूछता है।


इनको शुगर और BP है।  मेरी भी तबियत ख़राब रहती है। कल को कुछ हो गया तो कौन देखेगा हमें ?


बेचारा आरव। अपने माँ के प्यार को तरसता रहता है।


सुधा अपने विचार सागर के लहरों में गोते खा रही थी की Landline की घंटी बजी।  वो जैसे नींद से जागी। तभी गेट के खुलने की भी आवाज़ आयी। जरूर ये आ गए हैं।


सुधा ने फ़ोन उठाया। लाइन के दूसरे तरफ अवंतिका थी।


'माँ ठीक ठाक पहुंच गयी? तुम्हे एक चीज़ बतानी थी। सोचा कि तुम लखनऊ पहुँच जाओ तब बताउंगी। यहाँ बताती तो तुम बवाला खड़ा करती।

मैंने नौकरी छोड़ दी है। अब आरव के आंसू देखे नहीं जाते। अब मैं उसके साथ पूरा वक़्त बिताऊँगी। ' इतना कहके अवंतिका ने फ़ोन रख दिया।


सुधा को तो जैसे काठ मार गया। उसके होश उड़ गए।


लड़की पगला तो नहीं गयी है! अरे आजकल सारी लड़किया घर बार और नौकरी दोनों संभालती हैं। और हम अभी मर तो नहीं गए हैं। एक महीने बाद फ़िर बैंगलोर चले जाते।


हे भगवान् ! अब Mrs मलकानी को क्या मुँह दिखाउंगी ! उनकी बिट्टी तो इस साल CEO बन गयी है। अवन्ति के साथ की ही है।  और उसके तो दो बच्चे हैं।

क्या किया इस लड़की ने !! बस २ साल और मेहनत कर लेती तो ये भी CEO बन जाती। हाय रे भाग्य !


सुधा बदहवासी से दरवाजा खोलते हुए गेट के तरफ भागी और पतिदेव की तरफ चिल्ला के बोला - "सुनते हो क्या किया तुम्हारी बेटी ने !!!"



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