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Naina Mathur

Abstract

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Naina Mathur

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आदत बचा ली

आदत बचा ली

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यह कुछ दिन पहले की बात है। मैं कोचिंग पढ़ कर घर आ रही थी। यूं तो रास्ता ज्यादा लंबा नहीं है। मुझे रास्तों पर सब कुछ देख कर चलना पसंद है। इस तरफ क्या हो रहा है उस तरफ क्या हो रहा है और इससे में क्या सीख सकती हूं। रोज कुछ ना कुछ नया और कुछ ना कुछ अच्छा देखने और सीखने को मिल जाता।

आज भी यही हुआ आज जो सीखने को मिला वह बहुत ही अनमोल था। वैसे तो इधर ज्यादा वाहन नहीं चलते तो इतना खतरा नहीं है इसीलिए मैं ज्यादातर हर किसी को देखते हुए चलती हूं।

ऐसे ही देखते देखते मेरी नजर दो लड़कों पर पड़ी ।क्योंकि मैं उन्हें पीछे से देख रही थी तो उन दोनों की चाल मुझे अजीब लगी तो मैंने सोचा क्यों ना इन दोनों को आगे चलकर देखा जाए। मैंने जल्दी-जल्दी कदम बढ़ाए और उन दोनों लड़कों से आगे निकल आई। जब मैंने आगे बढ़ कर उन्हें देखा तो 'वह दोनों ही अंधे' थे इसलिए उन दोनों की चाल थोड़ी अजीब थी। लेकिन उनमें से एक पूरा अंधा था और जो दूसरा था उसको थोड़ा थोड़ा दिखाई पड़ता था। जिस लड़के को थोड़ा थोड़ा दिखाई देता था पहला वाला भी उसी के सहारे चल रहा था। दोनों एक-दूसरे का हाथ पकड़े हुए चल रहे थे। 

एक बात को मैंने गौर किया। वह दोनों चलते-चलते आसपास की चीजों से टकरा रहे थे। बावजूद इसके वह चलते ही जा रहे थे शायद वो कहीं जा रहे थे। मुझे नहीं लग रहा था जहां वह चाह रहे थे वहां जाने से उन्हें कोई भी रोक सकता है।

मैं उनसे पूछना चाहती थी कि वह कहां जा रहे हैं। मैं जैसे ही पूछने के लिए आगे बढ़ी। तब तक एक अंकल उन लड़कों के पास पहुंच गए। उन्होंने भी वही पूछा जो मैं पूछना चाह रही थी कि "वह दोनों आखिरकार जा कहां रहे हैं।"

यह सुनकर उन लड़कों के चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कान आ गई। जिसकी अच्छी बात थी कि वह मुस्कान बहुत प्यारी थी और बुरी बात थी कि उस प्यारी सी मुस्कान को वह दोनों नहीं देख सकते थे। और उन्होंने अंकल से कहा- "कहीं नहीं।"

यह सुनकर अंकल ने कहा- "कहीं तो जा रहे होंगे मुझे बता दो मैं छोड़ दूंगा।"

उन दोनों लड़कों ने फिर से हंसकर कहा- "कोई बात नहीं अंकल। रहने दीजिए । हमें आदत है । हम रोज ऐसे ही जाते हैं । आप 1 दिन छोड़ोगे , 2 दिन छोड़ोगे, 3 दिन छोड़ोगे पर हर दिन तो नहीं छोड़ सकते ना। इसलिए 1 दिन आपके साथ जाकर हम अपनी आदत नहीं बिगाड़ना चाहते। हम रोज सही सलामत पहुंच जाते हैं इसलिए हम खुद चले जाएंगे। धन्यवाद अंकल!"

उन दोनों का जवाब सुनकर अंकल ने कुछ नहीं कहा और मेरे मुंह से भी कुछ नहीं निकला। मैं पूरे रास्ते यही सोच कर चलती रही कि उनका नजरिया कितना अच्छा था। उन्होंने एक मदद को 'ना' कह कर अपनी रोज की आदत को बिगड़ने से बचा लिया।


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