Anu Singh

Romance Inspirational

5.0  

Anu Singh

Romance Inspirational

आ भी जाओ कि ज़िन्दगी अधूरी है

आ भी जाओ कि ज़िन्दगी अधूरी है

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वरुण का तबादला अभी अभी ही इस शहर में हुआ था और कल ही सारा सामान लेकर वो अपनी माँ के साथ यहाँ इस शहर में रहने आया था। अगले दिन उसे ऑफिस जाना था। सुबह तैयार होकर वो समय से ऑफिस पहुँच गया। वहां एक एक करके सभी कर्मचारी अपने नए बॉस वरुण से मिलने और अपना परिचय देने उसके केबिन में गए। वरुण का भी पहला दिन था तो वो भी सभी के बारे में जानकारी इकट्ठी कर रहा था। वो फाइल पलट रहा था कि तभी किसी की आवाज आई 'मे आयी कम इन सर ?' 

वरुण ने जानी पहचानी सी आवाज सुनकर जैसे ही ऊपर देखा तो सामने शिखा थी। वो अचानक ही अतीत की यादों में डूब गया और अगले ही पल वो वापस भी आ गया। उसने भाव बदलते हुए गंभीरता से कहा 'यस कम इन'.। शिखा भी वरुण को देख कर हैरान हो गयी।

उसके मुंह से अनायास ही निकल गया "आप यहाँ कैसे ?"

वरुण उसकी और देख कर हलके से मुस्कुराया.."बैठो शिखा खड़ी क्यों हो ?"

शिखा हैरानी से उसे देखे जा रही थी। फिर अचानक मुड़ी और वरुण के केबिन से निकल कर अपनी डेस्क पर चली गयी।

ऑफिस से आकर शिखा ने अपने मोबाइल पर वरुण का प्रोफाइल पिक्चर देखा तो जैसे अतीत की पुरानी यादों में खो गयी..की "कैसे कॉलेज के दिनों में सारा जमाना दीवाना था उसका और वो था कि उसे शिखा के अलावा कुछ दीखता ही नहीं था। कितने जतन किये थे उसने शिखा से अपने दिल की बात कहने के लिए लेकिन तब शिखा को मोहब्बत पर यकीन न था। और जब वाकई मोहब्बत हो गयी उसे, वरुण से तो ..वो उसका साथ न निभा सका। "

अगले दिन ऑफिस के गेट पर ही वरुण और शिखा का सामना हो गया। वरुण ने उसे देखते ही पूछा.. "अब तुम चश्मा नहीं लगाती ?"फिर उसे थोड़ा अजीब लगा अपना प्रश्न तो बोल पड़ा "अरे तुम ऐसे ही अच्छी लगती हो"। शिखा ने उसे घूर कर देखा तो उसने बात बदलते हुए कहा "नही मेरा मतलब की तुम पहले भी अच्छी लगती थी..अरे मैं कहना चाहता था कि तुम हमेशा अच्छी ही लगती हो। " वो कह कर तेज़ क़दमों से अपने केबिन की ओर बढ़ गया।

शिखा अवाक् सी थोड़ी देर खड़ी रही। फिर मन ही मन बुदबुदाई "अभी भी पागल ही है.."

शाम को जब ऑफिस से घर पहुंची ही थी कि वरुण का फ़ोन आ गया। शिखा ने सोचा कोई ऑफिस का काम होगा शायद 

उधर से वरुण ने कहा "कल मेरे साथ लंच पर चल सकती हो..प्लीज मना मत करना.."

शिखा पहले तो उसे बहुत कुछ सुनाने के मूड में थी लेकिन फिर उसे भी पहली मोहब्बत ने कहीं न कहीं बाँध रखा था। उसने वरुण को स्वीकृति दे दी।

अगले दिन ऑफिस से ही दोनों वरुण की गाड़ी में चले गए। वरुण ने शिखा से बिना पूछे ही खाना आर्डर कर दिया। शिखा ने उसे रोकते हुए कहा "इतने सालों में तो लोग बदल जाते हैं ये तो फिर भी मेरी पसंद का खाना है"

वरुण भी बोल पड़ा " वैसे ये तुमने जो घड़ी पेहेन रखी है ये कुछ जानी पहचानी सी लगती है। कहीं ये वो ही तो नहीं जो मैंने तुम्हारे जन्मदिन पर तोहफे में दी थी"

शिखा जो हुआ उसका अफ़सोस है मुझे लेकिन क्या हम सब कुछ भूल नहीं सकते। तुम्हे खो कर मैंने जिंदगी जीना छोड़ दिया.., साँसे लेना छोड़ दिया। और अगर किस्मत ने एक बार फिर मिलवाया है तो कुछ न कुछ तो है।

शिखा चिढ़ कर बोली..अभी भी वैसे ही हो..बदले नहीं तुम ?ये सब जो कह रहे हो तुम्हारी माँ को पता है ?क्योंकि मुझे डर है कि उन्हें पता चल जाएगा तो तुम फिर बदल जाओगे"

वरुण ने हसंते हुए कहा "तुम भी नहीं बदली..दिल की बात होंठो तक लाने में बहुत वक़्त लेती हो। रही बात माँ की ..जो गलती तब की अब नहीं करूँगा। "

शिखा ने भी चुनौती भरे स्वर से कहा "देखते हैं ?"

वरुण ने भी चुनौती स्वीकारते हुए कहा "देख लेना। "

इसी तरह वरुण और शिखा रोज ऑफिस के बाद मिलते ..कॉल या मैसेज पर बात होती। एक दिन ऑफिस में शिखा को पैर में ठोकर लगने से चोट लग गयी तो वरुण भगा दौड़ा अपने केबिन से उसके पास पहुँच गया। शिखा को कोई भी तकलीफ़ होती तो वह अस्वभाविक रूप से परेशान हो जाता। धीरे धीरे शिखा न चाहते हुए भी वरुण के नजदीक आती जा रही थी।

दोनों इस बात से अंजान थे की उनकी ये नजदीकियां ऑफिस के लोगों के लिए चटपटी बातो का जरिया बन गयी थी। लोग शिखा के चरित्र पर ऊँगली उठाने लगे। एक बोलता "नया बॉस आया नही की फंसा लिया चंगुल में"..दूसरा बोल पड़ता"यहाँ काम करने वालों की कद्र नहीं है बस साथ घूमने टहलने से सारे प्रोमोशन हो जाते हैं"। शिखा को देख कर मन ही मन हँसते और आपस में फुसफुसाते।

एक हफ्ते बाद ऑफिस पार्टी थी। वहां शिखा को अवार्ड मिलना था। ऑफिस पार्टी में भी शिखा वरुण के साथ ही आयी। वहां भी इसी तरह की बातें होती रहीं। शिखा के काम को भी लोग ने तिरस्कार की भावना से देखा।

वरुण के कान में भी बात पड़ गयी। एक लड़की ने पूछा "सर अपनी फैमिली को नहीं लाये" तो पास खड़ी दूसरी सहकर्मी बोली "अरे फैमिली कैसे लाते इनका राज न खुल जाता। घटिया लोग हैं और शिखा घटिया औरत। " वरुण का पारा सातवे आसमान पर चढ़ गया। लेकिन वो किस किस को जवाब देता। वो सीधा स्टेज पर गया और माइक हाथ में लेकर बोलना शुरू किया "आप लोग मेरी फैमिली से नहीं मिले..मेरी फैमिली में हम तीन हैं..मैं,मेरी माँ और मेरी बीवी..माँ तो अस्वस्थता के चलते न आ सकी लेकिन अपनी वाइफ से परिचय करवाता हूँ। शिखा अपनी सहेलियों से बात कर रही थी की अचानक अनाउंसमेंट सुनकर वो उस तरफ दौड़ी ..उसने हाथ के इशारे से वरुण को रोकने का प्रयास किया लेकिन तब तक वो बोल चुका था। "मीट माय वाइफ शिखा" चारो ओर लोग आश्चर्य से दोनों को देखने लगे..कानाफूसी शुरू हो गयी.."अरे आप स्वागत नहीं करेंगे मेरी पत्नी का..शिखा यहाँ आइये। " लोग ताली तो बजा रहे थे लेकिन एकटक शिखा को देखे जा रहे थे। वो धीमे क़दमों से स्टेज पर गयी। वरूण ने कहा "ये हैं मेरी पत्नी शिखा..9 वर्ष पहले हमारी शादी हुई। 5 साल से हम अलग अलग शहरों में रह रहे हैं लेकिन अलग अलग शहरों में रहने का मतलब ये तो नहीं की हमारा रिश्ता ख़त्म हो गया। या फिर दुनिया को साबित करने को हम हर वक़्त शादी का सर्टिफिकेट ले कर घूमे। दूसरों के बारे में बिना सोचे इतना कुछ कैसे बोल देते आप लोग। दूसरों की भावनाओं का भी सामान करना सीखिए। "

इतने हंगामे के बाद जब शिखा घर लौटी तो वरुण ने उस से इस बात के लिए माफ़ी मांगी बिना कि उसकी जानकारी के उसने इतना बड़ा फैसला ले लिया था उन दोनों के रिश्ते को दुनिया के सामने लाने का फैसला। उसने शिखा से कहा "तुम्हे कोई कुछ कहता है तो बर्दाश्त नहीं होता वो लडकियाँ थी ये करना पड़ा लड़के होते तो मुंह तोड़ देता। "

शिखा खोयी खोयी सी हैरान सी सोफे पे बैठी "वरुण फिर आपने तब कुछ क्यों नहीं कहा था जब आपकी माँ और बाकी रिश्तेदार मेरे लिए तरह तरह की बातें बना रहे थे। मुझे बाँझ कह कर सम्बोधित करते थे। मुझे औंर मेरे परिवार वालो को बुरा भला कहते थे। सिर्फ इसलिए की आप अपनी पसंद से मुझसे विवाह किया था। वो चार साल नरक बना दिए थे मेरे लिए। बच्चा न होना तो आपका निर्णय था कि आप तब बच्चे के लिए तैयार नहीं थे। फिर मेरी गलती क्यों ?"

वरुण ने आश्चर्य से पूछा "क्या तुम इसलिए घर छोड़ कर गयी थी। ..मुझे तो माँ ने कहा था कि तुम्हे मुझसे अधिक अपने सपने अपनी कामयाबी प्रिय है इसीलिए तुम चली गईं। मैं मानता हूँ की माँ के और तुम्हारे सम्बन्ध शुरू से ही अच्छे नहीं थे। मुझे लगा ये भी कारण होगा तुम्हारे दूर जाने का। और तुम अपने मायके भी नही गयी। तुमने तो जैसे सोच ही लिया था कि मेरी शक्ल उम्र भर नहीं देखोगी। तभी तो मुझसे बिना कुछ कहे इतनी दूर चली आयीं। मेरी गलती है कि उस वक़्त अपनी व्यस्तता के चलते तुम्हे समय नहीं दे पाया। तुम्हारे और माँ के बीच जो भी समस्याएं हुई ये भी ही असफलता थी। लेकिन तुम्हे मुझे छोड़कर इस तरह जाने का फैसला नहीं लेना चाहिये था। हम साथ होते सब कुछ ठीक ही हो जाता। लेकिन सब कुछ गलत हो गया। लेकिन फिर भी मुझे इस बात का गर्व है कि इतनी सारी असफलताओं के बीच भी हमारा प्रेम सफल हो गया। मैंने सदैव ही तुम्हे चाहा किसी और को जीवन में वो स्थान नहीं दिया जो तुम्हारा था।

शिखा ने कहा" मैं थक गयी थी रोज रोज के विवादों से..मुझसे वो माहौल बर्दाश्त नहीं होता था। किसने कहा कि तुम्हारी शक्ल नहीं देखनी थी मुझे। मेरी तो सारी दुनिया ही तुम्हारी सूरत में बसी थी। बस मैं चाहती थी की हम दोनों खुश रहें चाहे अलग अलग ही सही।

वरुण ने शिखा का हाथ थाम लिया "बस शिखा! एक रिश्ते को निभाने के लिए दूसरे का त्याग जरूरी तो नहीं। मैं दोनों रिश्ते निभाउंगा पूरी श्रद्धा और समर्पण से.. मैं वादा करता हूँ। मेरे साथ चलो। "

शिखा ने कहा "मैं भी ज़िन्दगी को दूसरा मौका देना चाहती हूँ। कोशिश करुँगी की जो गलतियां अतीत में हुई वो अब न हों। कल माँ को लेकर आना। तुम्हारी दुल्हन इस बार तभी जायेगी जब खुद माँ लेने आएगी।

व्वारुं ने जब माँ को इस बारे में बताया तो उन्होंने कहा "अरे मैं तो ऐसे ही बोल देती थी। भला कोई बड़ो की बात को दिल से लगाता है क्या। .मुझे तो बस एक पोता या पोती दे दे। मैं खुद ही चलूंगी तेरी अकडू बीवी को लाने।

वरुण ने हँसते हुए माँ के आगे हाथ जोड़ लिए "माँ अब तो सुधर जा वार्ना तेरे पोते पोती भी तेरे और तेरी बहू जैसे अकडू ही होंगे। "

माँ ने भी हँसते हुए वरुण के माथे पर थपकी दी "बेटा इतने दिन में देख लिया तुझे। तेरी ख़ुशी से बढ़कर कुछ भी नहीं मेरे लिए। शिखा को बहुत प्यार दूँगी और डांटूंगी भी की माँ को कैसे भूल गयी।

अगले दिन सुबह वरुण अपनी माँ के साथ आया। और अपनी पत्नी को ससम्मान वापस अपने घर ले गया।



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