Ayush Vora

Drama Tragedy Inspirational

3  

Ayush Vora

Drama Tragedy Inspirational

A GOOD TRAGEDY OF MIND DILEMMA

A GOOD TRAGEDY OF MIND DILEMMA

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आज कुछ ख्याल ठीक नहीं आ रहे थे।  

मोहित कुछ ज्यादा परेशान लग रहा था, आज पहली बार उसने ऑफिस से कोई कारण न होते हुए भी छुट्टी ली थी, वो सीधा रिवरफ्रन्ट चला गया और अपना फोन DND पर रख दिया। 

क्या हुआ! क्या समस्या आन पड़ी थी किसी को इस बात की भनक भी नहीं थी!, पहले कभी मोहित ने ऐसा नहीं किया था और मोहित जैसे मेहनती, जिम्मेदार और काम को इतनी ज्यादा संजीदगी से करने वाला कोई उस ऑफिस में नहीं था, तो फिर क्या हुआ था उसको क्यू वो आज काम करने की बजाए वो यहाँ आकर बैठा था?, 

शायद यह बात मोहित भी नहीं जानता था। 

वो दरअसल अहमदाबाद मे अकेला था, जब 20 साल का हुआ तब ही उसके माता-पिता एक जानलेवा अकस्मात में चल बसे थे फिर वो अपने दादा-दादी के साथ रहने लगा, उसे इन सब में से उभरने के लिए 2 साल लगे, वो कभी किसी से बात नहीं करता, बस काम से काम रखता और अकेला रहता। वो अपने पास अपने पिता की दी हुई एक चैन रखता था और कभी उसको अपने से दूर नहीं होने देता था, मोहित ने अपना मास्टर्स मनोविज्ञान से किया और फिर पीएचडी करने अहमदाबाद आ गया उसी बीच एक मल्टीनैशनल कॉम्पनी BSD MLT. PRIVET LI. में केंड़ीडेट हाईरिंग की जॉब मिली जिसका एक वर्ष का कान्ट्रैक्ट 20 लाख का था, उसकी जब पीएचडी खतम हुआ तब ही पहले दादी और उसके 2 महीने के खत्म होते होते

दादा भी स्वर्गवासी हो गए, अब मोहित के लिए ऐसा कोई नहीं बच की जिसके लिए वो कमाए और ज़िम्मेदारी निभाए, 

मोहित अब बुरी तरह से टूट चुका था, उसके शांत रहने और किसी जगह पर न जाने के कारण कोई उसका दोस्त भी न था, अब उसका हाल-चाल पूछने वाला या खाना खाने को कहने वाला भी कोई न बचा, उसको अब भगवान नाम के विचार से बुरी तरह से भरोसा उठ गया था। 

और फिर आज वो ऑफिस न जा कर यहाँ रिवरफ्रन्ट आ गया था, वो अब क्या करे और क्यू करे यह वो समझ नहीं प रहा था, उसने एक बार यह सोचा भी सही की वो आत्महत्या करे पर जब वो ऐसा करने गया तो वहाँ के गार्ड ने उसको रोक लिया और पुलिस भी वही थी तो वो यह देख कर मोहित के पास आए और कहने लगे कि “ આ શું કરવા જઈ રહ્યો હતો કઈ ભાન છે કે નહીં?, તારે આત્મહત્યા કરવી છે, કપડાં થી તો સારા ઘર નો લાગે છે!, તને કઈ તારા માં-બાપ ની ચિંતા છે કે નહીં હેં?” 

मोहित: सर चिंता करने के लिए कोई अपना तो हो, मैं तो अकेला हूँ। मर भी जाऊँ तो भी कोई फर्क नहीं हे। 

इतना कहते कहते उसकी आँख और गला भर गया, पुलिस वाले भी अचंभे में आ गए। 

उन्होंने पूछा “कहाँ के हो?” 

मोहित: बिहार”

“क्या करते हो?”

“एक मल्टीनैशनल कॉम्पनी BSD MLT. PRIVET LI. में केंड़ीडेट हाईरिंग की जॉब”

“फिर तो खूब कमाते होंगे!, क्या करना पसंद करते हो?”

“हाँ, मुझे कुछ भी पसंद नहीं हे”

“एक बात कहूँ बेटा मैं ऐसे बहुत लोगों को जानता हूँ, जिन्होंने अपने लोगों को खोया हे, उनको भी संभलने में वक़्त लगा पर वो ठीक हुए, किसी के लिए नहीं तो अपने लिए। तुम अपने स्वभाव को बदलो, लोगों से मिलो, हो सके किसी को अपना ख्याल रखने का मौका दो और सुख - दुख बांटो। किसी को अपने करीब आने का एक मौका तो दो, फिर देखो तुम्हारी दुनिया कैसे बदलती है।”

इतना सुनने के बाद मोहित ने वो किया जो उसने शायद एक अरसे से नहीं किया, वो छोटे बच्चे की तरह रोया और इंस्पेक्टर से छोटे बच्चे की तरह लिपट गया। ऐसा लगा की उन पुलिसवाले को पता था की यह होगा और उन्होंने भी मोहित को अपने बच्चे की तरह रखा और उसकी समस्या का रास्ता भी बताया। 

उस दिन के बाद मोहित कभी उनसे नहीं मिला। पर मोहित ने वही किया की जैसे उन्होंने बताया। आज भी मोहित जब किसी पुलिसवाले को देखता है तो उसको उनका चेहरा और वो दिन याद आता है। 


                               


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