मुझे तुम कभी भी भुला न सकोगे
मुझे तुम कभी भी भुला न सकोगे
आज वो जंग पड़ी पुरानी अलमारी कबाड़ी वाले को देनी थी, तो मजबूरन जो एक अलग दुनिया का उसमे बसेर था उसको उजाड़ना पड़ रहा था, यकीनन मैं उसमे बसे हुए कीड़ों और उनके बच्चों के लिए पावर रेंजर्स’ के उन विलन की तरह था , जो उनकी इस बसी - बसाई दुनिया मे तबाही लाना चाहता है।
खैर, जब मैंने उसमे से मानव इतिहास की सबसे प्राचीन चीज निकाल रहा हूं ऐसा कोई भाव मन मे प्रकट हो रहा था, क्योंकि मेरे पास पहले की जमाने की इतनी चीज़े थी की उसके बारे मे क्या ही कहा जाय, मेरे पास एक बहुत पुराना ‘टाइप राइटर’, खातों मे लगाए जाने वाले ‘स्टाम्प पेपर पुराने सिक्के, एक बहोत छोटा सा रेडियो जिसमे सिर्फ आकाशवाणी ही आती थी , गुलाम अली साहब की आल्बम , कील वाला सीडी प्लेयर पर बहोत छोटा सा, कुछ पुराने खत सायद जीने कभी मैं भेज ही न सका, वो खत जिसमें अपना पूरा प्रेम शरीख कर देता था, पर फिर उसको पोस्ट करने की हिम्मत किसमे होती है, वो फिर ऐसे ही रह जाता है, जिसे अभी हम बहोत कुछ लिख कर बैक्स्पेस दे देते है, हा! बस वैसे ही। बस फरक सिर्फ इतना है की बैक्स्पेस देने के बाद हम थोड़ी देर या थोड़े दिनों मे उसको भूल जाते है, पर यह खत.. यह खत आपका पिच तब तक नहीं छोड़ते जब तक आप मर नहीं जाते!। जब मैंने उन्हे पढ़ने की जहमत उठाई तो थोड़ा तो बच्चों जैसा लगा, पर फिर लगा की आज कल के इन्स्टेन्ट ब्रेकअप के जमाने मैं छुटकिओ मे प्रेम का सफर खत्म होजाता है, जब की उन दिनों मैं खत ही 5 महीनों मैं पहोचते थे, इसलिए किसी भी प्रेम की उम्र 2 साल तो कमसेकम निकलती थी। खेर, इन सब का अब का अब कुछ लेना देना ही नहीं रहा तो अब सोच कर भी क्या फायदा?
इतने मई मेरी नजर एक ब्लैक एण्ड व्हाइट फोटो पर गई जिसमे.. शायद चित्रा थी, चित्रा .. अब क्या कहू उसके बारे मे?! अब यह कहू की चित्रा वो लड़की थी जिसके सामने मेरी हेसियत शायद नदी के सामने एक पानी भरे गड्ढे जितनी थी,
यह कहू की चित्रा से शांत शायद ही मैंने कोई देखा हो, 19-20 की उम्र मै भी ऐसा ठहराहव और समज की कोई साधु भी अपने साधु होने पर शक करे!, या यह कहू की उसकी सोच एक अपनी और अपनों की बेहतरी मे लागि रहती थी, या यह की अगर किसी को मदद चाहिए या समस्या का समाधान या आगे कॉनसा करियर चलेगा यह सब चाहिए हो तो सब के मन मे एक नाम आता था ‘चित्रा’,
पर मेरे सामने तो बस वो एक बच्ची बन कर रही, मैंने कई बार जान ने की कोशिश की मेरे सामने ही क्यू?, जब की मुझ से बहतर हजारों लोग थे..!,
फिर एक दिन कॉलेज से घर की और आते वक़्त जब पूछा तो जो उसने बताया वो मुझे मरने तलक याद रहेगा, उसने कहा की “ देखो आयुष तुम कभी मुझे वैसे नहीं देखते जैसे हर कोइ देखता है, सब मुझसे मदद चाहते हे या अपनी उलझन सुलझाना कहहते है और सिर्फ इसी लिए मेरे पास आते है , उसके बाद वो कभी हाल पूछना भी पसंद नहीं करते जब कि तुम कोई उम्मीद के बगेर मुजसे बात करते हो तुम्हें कोई आशा नहीं है की मुझे केस होना चाहिए या क्या होना चाहिए, तुम बस मुझे खुश देखना चाहते हो और बस इतना काफी है मेरे लिए तुम्हारे सामने बच्चों की तरह व्यवहार के लिए” इतना काफी था मेरे लिए उसको 10 मिनिटों तक घूरते रहने के लिए। फिर पता नहीं क्या हुआ मुझे की मैं खुद को रोक न सको उसको कस के गले लगाने से, और पता नहीं क्यू मेरी आखें भी अविरत जल को प्रवाहीत कर रही थी, करीबन 5 मिनटों तक मैं उससे लिपटा रहा था और पता नहीं किस हक से!?
उसके 2 बरस बाद हमने एक दूसरे को शादी का वादा किया फिर हम अपने अपने जीवन मे कुछ ऐसे उलझे की 6 साल बह गए और हमे पता ही चला फिर सोचा इतने वक़्त तक एक दूसरे से मिलन नहीं हो पाया तो एक नया कैफे खुला था तो वहा मिलने का निश्चय हुआ, मिलन का समय शाम को 6 बजे का तैय हुआ। वैसे अब वो एक बेहतरीन मनोचिकित्सक थी, तो समय वैसे भी नहीं था इसलिए वो सिर्फ 2 घंटे ही निकाल पाए थी, पर शायद प्रभु को यह नमंजूर था, चित्रा का रास्ते मे ही एक महभयंकर एक्सीडेंट हुआ और रुग्णालय पहुचे उससे पहले उसकी आत्मा देह को छोड़ गई..।
इस घटना को 2 अरसे हो चुके है पर जैसे यह कल ही हुआ हो ऐसा लगता है उसके बाद मैंने कभी शादी के बारे मे नहीं सोचा।
अब मेरे माता पिता भी नहीं रहे और कोई दोस्त भी नहीं है, बस इन यादों के सहारे ही जी रहा हु और आज यह अलमारी कबाड़ी वाले को दे कर मैं इससे मुक्त हो जाऊंगा, फिर बस मृत्यु के आने का इंतजार शबरी की तरह करूंगा।
“अरे तुम्हें पता हे यह रोज यही बोलता है सुन है की पिछले 30 सालों से यह यही है और रोज यही कहानी सब को सुनता है, उसकी प्रेमिका के मरने के बाद ही एक गंभीर सदमे मे चला गया और इसका कोई इलाज नहीं हो सका”
“बहोत पीड़ा हुई यह जान कर, आप जल्द ही मुक्त हो इस पीड़ा से यही प्रभु से प्रार्थना है”
"अरे! ऐसा क्यू बोलते हो मुझे क्या हुआ है मैं ठीक तो हूं। मुझे क्या हुआ है, मैं बिल्कुल ठीक हूं, मैं ठीक हूं।