ज़िन्दगी
ज़िन्दगी
अब तो कहना मान ज़िन्दगी
सुख की चादर तान ज़िन्दगी।
ढेरों आंसू लिख पढ़ डाले
रच ले कुछ मुस्कान ज़िन्दगी।
अपनी मंजिल आप ढूंढ ले
ओ मेरी नादान ज़िन्दगी।
रुठा- रुठी छोड़ अरे अब
दो दिन की मेहमान ज़िन्दगी।
साथ किसी के कौन गया कब
इस सच को पहचान ज़िन्दगी।
सारे मौसम इसके अनुचर
समय बड़ा बलवान ज़िन्दगी।
हंसकर तय करने ही होंगे
सांसों के सोपान ज़िन्दगी।
आह न निकले तनिक कंठ से
शिव बनकर विषपान ज़िन्दगी।
"वर्षा" माटी का तन इस पर
करना मत अभिमान ज़िन्दगी।