ग़ज़ल
ग़ज़ल
जमीं है, आसमान है गजल तो कायनात है
महज ये शायरी नहीं, दिल से दिल की बात है।
जो दिख रहा वो सच नहीं, जो सच है लुप्त वो कहीं
बिछी हुई हर इक तरफ तो झूठ की बिसात है।
ये दौर, इसमें उंगलियां मशीन की ग़ुलाम हैं
न काग़जों की दौलतें, ना लेखनी दवात है।