STORYMIRROR

CHETAN SHARMA

Tragedy

2  

CHETAN SHARMA

Tragedy

ज़िक्र

ज़िक्र

1 min
352


वो कागज़ आज भी मेरे रूबरू हैं

जिनमें मैं तुम्हारा ज़िक्र किया करता था,

वो लम्हे आज भी मेरी आरजू है

जिनमें मैं तुम्हारी फिक्र किया करता था।


जिंदा तो आज भी हूं मैं

मगर वो लम्हे चले गए जिनमें मैं

तुम्हारे आने का शुक्र किया करता था।


याद तो आता होगा न तुम्हें भी

जब वो नम रातों में मुलाकातें किया करते थे

भीगी बारिशों में अक्सर बातें किया करते थे


वो बातें आज भी मेरी जुस्तजू हैं जिनमें मैं

तुम्हारा मेरे होने पर फक्र किया करता था,

मगर वो लम्हे चले गए जिनमें मैं

तुम्हारे आने का शुक्र क्या करता था।


Rate this content
Log in

More hindi poem from CHETAN SHARMA

Similar hindi poem from Tragedy