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ritesh deo

Abstract

4  

ritesh deo

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यही चाहत है

यही चाहत है

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यही चाहत है..

खुश तो नही हूँ मैं

मगर होने की चाहत है

वर्तमान में ध्वस्त हूँ लेकिन

फिर सँवरने की आस ही राहत है...


ज़िंदा तो हूँ मैं

पर जीने की चाहत है

मर चुका हूँ कई बार

अब अमर होने में राहत है...


सहारा कब तक बनू दुनिया का

सहारे की मुझे भी चाहत है

मेरी नाव इस "भवसागर" के मध्य है

उसे किसी किनारे की चाहत है...


ठीक तो नही हूँ मैं अब 

मगर ठीक होने की चाहत है

मन पर अनुशासन ज़रूरी है

वरना सच में यह आफत है...


आँखों में अभी आँसू नही

मगर बहुत रोने की चाहत है

अकेला तो कब से रहा हूँ मैं

अब ख़ुद में खोने की चाहत है...


प्यार बहुत किया स्वयं से 

अब गुस्सा करने की चाहत है

अनावश्यक ख़ुद को सिर न चढ़ाओ

आचरण में संयम नियम का स्वागत है...


डरता नही किसी से मैं

निज कर्मो से लेकिन अब डरने की चाहत है 

मेरे ख़्याल से बहुत जी लिया हूँ मैं

अब वतन के लिये मरने की चाहत है...!


कह तो बहुत कुछ दिया जीवन में

अब उसे सच करने की चाहत है

"कथनी -करनी " जहाँ एक हो जाए

तब समझ लेना 


यही ईश्वर की इबादत है...

यही ईश्वर की इबादत है...


         


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