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Prabhat Pandey

Inspirational

4  

Prabhat Pandey

Inspirational

यह कैसा धुआँ है

यह कैसा धुआँ है

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लरजती लौ चरागों की 

यही संदेश देती है 

अर्पण चाहत बन जाये 

तो मन अभिलाषी होता है, 

बदलते चेहरे की फितरत से 

क्यों हैरान है कैमरा 

जग में कोई नहीं ऐसा 

जो न गुमराह होता है 

भरोसा उगता ढलता है, 

हर एक की सांसो से 

तन मरता है एक बार 

आज ,जमीर सौ सौ बार मरता है,

उसी को मारना

फिर कल उसे खुदा कहना 

न जाने किसके इशारे से 

ये वक्त चलता है, 

नदी ,झीलेँ ,समुन्दर ,

खून इन्सानों ने पी डाले 

बचा औरों की नज़रों से 

वो अपराध करता है, 

आज ,जीवन की पगडंडी पर 

सत चिंतन हो नहीं पाता 

तृष्णा का तर्पण करने पर ही 

तन मन काशी होता है,

'प्रभात' कैसी है यह मानवता ,

जिसमें मानवता का नाम नहीं है 

होती बड़ी बड़ी बातें ,

पर बातों का दाम नहीं है 

मजहब के उसूलों का

उड़ाता है वह मजाक 

डंके की चोट पर कहता ,

भगवान नहीं है 

देखो नफ़रत की दीवारें ,

कितनी ऊँची उठ गईं  

घृणा द्धेष की ईंटे ,

आज मजबूती से जम गईं 

खोटे ही अपने नाम की

शोहरत पे तुले हैं 

अच्छों को अपने इल्म का

अभिमान नहीं है 

कहीं भूखा है तन कोई ,

कहीं भूख तन की है 

पुते हैं सबके चेहरे ,

यह कैसा धुआँ है || 


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