STORYMIRROR

Satish Chandra Pandey

Abstract

3  

Satish Chandra Pandey

Abstract

ये नहीं लम्हें हैं ऐसे

ये नहीं लम्हें हैं ऐसे

1 min
230


पास बैठे हो

बहुत ही खूबसूरत है नजारा

कैद करना चाहता है

इन पलों को मन हमारा।

जिन्दगी की 

खुशी सबसे बड़ी तो आप हो

आज आई है खुशी जब

आप बैठे पास हो।

थे कहाँ अब तक

रहे क्यों, दूर दिल की वादियों से

अश्क की नदियों में रखकर

क्यों छुपे थे कातिलों से।

हम भी क्या बातें पुरानी

कर रहे हैं आज फिर से

ये नहीं लम्हें हैं ऐसे

हाथ से जाने दें फिर से।

आज आंगन खूबसूरत

लग रहा है खूब सारा,

खिल गये हैं फूल

गुलदस्ता हुआ है मन हमारा।

अब न जाना दूर

दिल के पास ही रखना बसेरा

रात बीती हो गया है

नेह का सच्चा सवेरा।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract