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Archana Verma

Abstract

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Archana Verma

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ये जरुरी तो नहीं

ये जरुरी तो नहीं

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हर तरफ उजाला हो ये जरुरी तो नहीं

मुझे धीमी रोशनी भी अच्छी लगती है


यहाँ हर कोई एक आरज़ू ओढ़े बैठा है

पर सबकी जरुरी हो ये जरुरी तो नहीं


मुझे कमियां भी अच्छी लगती है

मंज़िलें चूनने में गलतियाँ ना हो


इतना समझदार होना जरुरी तो नहीं

मुझे बेवकूफ़ियाँ भी अच्छी लगती है


है उसके पास जो ये उसका (भगवान) करम है

हर कर्म का मिले सिला ये जरुरी तो नहीं


मुझे उसकी ये रज़ा भी अच्छी लगती है

मैं इंसान हूँ गलतियों से बना


पर उसकी कोई माफी न हो ये जरुरी तो नहीं

मुझे थोड़ी शरमदारी भी अच्छी लगती है



उमर गुजरने के साथ तजुर्बा तो मिला बहुत

पर अब कोई और तजुर्बा ना हो ये जरुरी तो नहीं

मुझे नादानियां अब भी अच्छी लगती है


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