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Harsh Bindal

Tragedy

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Harsh Bindal

Tragedy

ये जिस जिस की भी कहानी है।

ये जिस जिस की भी कहानी है।

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वो लक्ष्मी, वो सरस्वती, वो माँ काली है,

आज जिसकी आबरू इस इंसान

ने उछाली है।

डर लगता है घर से निकलने में,

ये कैसी दशा हमने उसकी बना डाली है।।


माँ का दर्जा दिए जिसे है,

उसी को नीचा दिखाया है।,

की पूजा थी कभी किसी की,

आज उसी को नोच खाया है।।


वहशी इंसान है बना आज का,

खुद से आगे न सोच पाया है।

देकर चोट आज उसके अहम को,

सोच...तूने भी क्या पाया है।।


मन नहीं उभर पता,

तन की चोट भर जाती है,

जीवन पर लगी ये स्याही,

कभी मिट नहीं पाती है।।


गुज़रती है जब उस राह से,

आज भी वो डर जाती है।

हो गया है अरसा,

फिर भी वो कुछ भूल न पाती है।।


समझनी होगी उसकी दशा..

आज हम सब को,

जिस पर की सबने अपनी मनमानी है,

लेकर साथ चलना है उसे आज,

ये कविता जिस-जिस की भी कहानी है।।


रही जो वंचित ख़ुशी से अब तक,

हर ख़ुशी उसे दिखानी है।

लेकर साथ चलना है उसे आज,

ये कविता जिस की भी कहानी है...

ये कविता जिसकी भी कहानी है।।


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