यादों के गलियारे से
यादों के गलियारे से
क्या आज भी मुझसे उतनी ही मुहब्बत करते हो ?
जाते जाते, पीछे मुड़ते हुए उसने पूछा।
जवाबमें मैं सिर्फ हलकासा मुस्कुराया
मुहब्बत की वो दास्ताँ बयाँ न कर पाया।
वह चादरों की सिलवटें आज भी वैसी ही रखी है
तुम्हारी ख़ुशबू लपेटे हुए रोज़ मेरे पास सो जाती है।
वह तकियाँ जिसपे लगे थे तुम्हारे मेहंदी के रंग
दिलाता है मुझे एहसास तुम्हारे हाथों का, मेरे हाथों में।
वह आईना, आज भी जिस पर लगी तुम्हारी बिंदिया
मुड़कर तुम्हे आईने में ढूंढने के लिए मजबूर कर देती है।
वो चाय की प्याली आज भी संभाले रखी है मैंने
घबराता हूँ, कही उस पर लगे तुम्हारे
होठों के निशान मिट ना जायें।
सेकडों चिठ्ठींयों और तसवीरोंसे भरी वह अलमारी
कभी ख़ालीपन महसूस हो तो ख़ोल के बैठता हूँ।
बताओ मुहब्बत करते हो अभी भी मुझसे ?
उसने फिर पूछा जवाब में मैं सिर्फ हल्का सा मुस्कुराया।