STORYMIRROR

manisha sinha

Abstract

4.7  

manisha sinha

Abstract

यादें

यादें

1 min
345


अतीत से निकलकर यादें

आज को कुरेद रहीं।

भागते क़दमों में मेरे

बेड़ियों सी डाल रही।


वो धूल भरी पगडंडियाँ जिन्हें

छोड़ आए थे बरसो पहले

उनसे बारिश की,

भीनी सी ख़ुशबू आ रही।


मतलब की मुस्कान लिए जब

लोग फिरते हैं आस पास

तब छत पर बैठे दोस्तों के

ठहाकों की गूँज कानों में आ रही।


शोर शराबों में भी जब

चैन की नींद सो लेते थे।

आज ख़ामोश कमरे से भी

एक चीख़ पुकार सी आ रही।


हजारों की भीड़ में भी एक

पहचान लिए फिरते थे कभी

आज ख़ुद की परछाईं भी

अजनबी सी लग रही।


बंद मुट्ठी में जो कभी

सपनों की शौगात थी।

आज उनके पूरे होने पर

फकीरों सी हालत हो रही।


अजीब सा कौतूहल है,

अजीब सा कोलाहल है।

यादों की घेराबंदी है,

दिल वक़्त का ग़ुलाम है।


क्यों ना हम फिर से,

उस अतीत को ज़िंदा कर लें।

निश्चल निश्छल उन यादों को हम

आज की शक्ल दे दें।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract