STORYMIRROR

अच्युतं केशवं

Abstract

4  

अच्युतं केशवं

Abstract

याद का दीपक जला है

याद का दीपक जला है

1 min
486

तुम रहे तुमसे रही,

सौ सौ शिकायत। 

बनी रहती की न

किस्मत ने इनायत। 


ओ पिता !

तुम प्रिय नहीं थे, 

पर बिछुड़ना भी

खला है। 


याद है दो जून का,

मंगल अमंगल कर गया था। 

पुष्प सुरभित बाग को

वीरान जंगल कर गया था।


ले चिता की राख गीले

स्वप्न चित्रों पर मला है। 

मैं अभागा था अभागा हूँ

मगर हारा नही हूँ। 


वक्त का मारा सही मैं

किंतु बेचारा नहीं हूँ। 

मोम का दिल आग दोनों

हाथ में लेकर चला है। 


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract