व्याकुलता
व्याकुलता
मन विकल मेरा तुम बिन है
क्या तुम भी नहीं अधीर सखा
काली- काली सी रजनी है
क्रीड़ा करता विद्युत घन में
मैं सहम लिपट जाती तुमसे
होते अगर तुम पास सखा
मन विकल मेरा तुम बिन है
क्या तुम भी नहीं अधीर सखा?
मेरी पीड़ाएं मेघ सदृश्य
काले बादल से आच्छादित
हर चीर तमस की चादर को
बरसाओ सुधा रस नीर सखा
मन विकल मेरा तुम बिन है
क्या तुम भी नहीं अधीर सखा?
जग अपने सुख में खोया है
निश्चिंत पड़ा है सोया है
मैं अपने दुःख से दग्ध यहाँ
हर पल जोहूँ हूँ बाट सखा
मन विकल तुम्हारे बिन है
क्या तुम भी नहीं अधीर सखा?
जाने क्यों जग की दुश्चिंता
सपनों को धूमिल करती है
मैं पीड़ित औ आहत होकर
बस तुझ में ढूंढू आस सखा
मन विकल मेरा तुम बिन है
क्या तुम भी नहीं अधीर सखा?
एक सांस मेरी आती है औ
एक सांस उलझ जाती मुझ से
क्या जाने अटके प्राण कहाँ
हूँ मौन विवश बेबस मैं सखा
मन विकल मेरा तुम बिन है
क्या तुम भी नहीं अधीर सखा?
अंतिम सांसों का है बंधन
क्षय होना मेरा शनै -शनै
मैं तुझ में हूँ तुम हो मुझ में
निष्ठुर न करो आघात सखा?
मन विकल मेरा तुम बिन है
क्या तुम भी नहीं अधीर सखा?
जीवन-सरिता की लहर-लहर,
मिटने को तत्तपर है हर क्षण
सयोंग -वियोग का दावानल
इसका कब देखा अंत सखा
मन मेरा विकल तुम बिन है
क्या तुम भी नहीं अधीर सखा?
