वतन के रखवाले
वतन के रखवाले
हम चल पड़े भारत माता की इज़्ज़त बचाने
सीमा के बाहर से गोलियां, और अंदर से
पत्थर खाने
मेरी शहादत की खबर से जब गुट रही
होंगी चूड़ियाँ
कोई मेरी बेटी तक पहुंचा देना संदूक
मे पड़ी गुड़िया
खा रहे हम सरहद पे मौत की जो गोलियां,
ऐनक-ए-मजहब उतार के तू कभी तो
रोलीयां?
देशहीत के नाम पर बिक रहा ये देश है
जल चुकी इंसानियत बस राख ही अब
शेष है
लड़ -झगड़ के ये जनता, खो रही सब
होश है
न जाने कौन फैला रहा मज़हब का ये
आक्रोश है
नाम ले जाती का तू ना फैला ऐसी खूनी जंग,
कट चुका जाती के नाम, पहले ही अपना एक
अंग
खोखली हो, टूट चुकी इस देश की प्रनाली है
बंट रहे इस देश ने मज़हब की सरहदें बना
ली है
इस प्रनाली संग तुम इंसाफ करो या माफ़ करो
असमानता के राक्षस को ना लहू से साफ करो..
ना लहू से साफ करो
