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वसंत

वसंत

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पाहुन आया री सखी!,मन में लेकर मोद।

पीले-पीले फूल से,भरी धरा की गोद।


कुसुम- कली हैं झूमतीं, भौंरा पीता जाम।

आया है ऋतुराज ले, सुखद सुहानी शाम।


झूम रहे महुआ मदन, बरसे प्रीत फुहार।

 ऋतु ये मधुमास की,आ प्रिय कर लें प्यार।


फूली सरसों खेत में,बौराये हैं आम।

कोख धरा की हो गई, कितनी ललित ललाम।


पीत- पृष्ठ को चूमकर, भौंरा हुआ अनंग।

रग- रग में अनुराग भर, लुटा रहा मधुरंग।


ऋतु वसंत की आ गई, शीतल बहे बयार।

रंग-बिरंगे पुष्प से, धरा करे श्रृंगार।


ज्यों पतझर का अंत कर, आता नवल वसंत।

त्यों हर दुख के बाद ही, खुशियाँ मिलें अनंत।


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