STORYMIRROR

Sudhir Srivastava

Abstract

4  

Sudhir Srivastava

Abstract

वर्ण पिरामिड-लज्जा

वर्ण पिरामिड-लज्जा

1 min
223

ये

बड़े 

बेशर्म

हैं,लज्जा तो

छूकर कभी

नहीं गुजरती

लज्जा विहीन हैं ये।


यारों

कुछ तो

शर्म करो

कब तक ये

बेशर्मी दिखाते

बेहयाई करोगे।


हैं

हम

सब ही

बेरहम

जो भी करना 

हो आकर करो

लज्जित हो जाओगे।


ये 

कैसे 

सुधरें

भला,जब

खानदान ही

इसी रंग ढंग

में रचा बसा है।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract