Manju Sharma

Abstract

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Manju Sharma

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वृद्धा

वृद्धा

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कर दिया अपना जीवन अर्पण,

पर बच्चों का दिया सँवार।

फर्ज अपना बखूबी निभाया,

माँ-बाप हुये खुशहाल।


अब दिन आये अच्छे,

सपना मन में देखा।

पर पल में ही छिटक गया,

झूठा ख्वाब जो देखा।


बेटों ने दिखाए तेवर,

बड़े जो अब हो गये।

बहुएँ थी अब साथ उनके,

माँ के दिन अब लद गये।


नहीं सुहाती माँ तनिक भी,

आजादी उन्हें चाहिये।

माँ को संग रख कर,

आफत उन्हें नहीं चाहिये।


करते ना नुकर दोनों भाई,

रखना कोई नहीं चाहता।

देख दादी की दशा पोता का,

ह्रदय द्रवित हो उठा।


देख बेटों की परेशानी,

ममता उसकी बिलख उठी।

देख अपनी मनोदशा,

इस घात से तड़प उठी।


 किया प्रण उसने मन में, 

 बच्चे मेरे सदा खुश रहे।

 माँ की वजह से उन्हें,

 जीवन में ना कोई दुख रहे।


 बेटे के संग जाते-जाते,

 रुकवायी रास्ते में गाड़ी।

 मंदिर के दर्शन के बहाने,

 मोड़ी अपने जीवन की गाड़ी।


 हो गई ओझल उनकी नजरों से,

 सदा सदा के लिए उन्हें मुक्त किया।

 अपने जीने के लिए,

 ठिकाना खुद ढूँढ लिया।


  वृद्धा आश्रम का सहारा,

  माँ ने तुरंत लिया।

  अपने जीने का बसेरा,

  माँ ने फिर से बना लिया।


   हे वंदनीय देव तुल्य,

  माता-पिता का सदा हो सम्मान।

  है यह घर के आधार स्तंभ,

  इन पर करो सदा अभिमान।


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