बेरोजगारी
बेरोजगारी


बेरोजगारी पैर पसारे
पढ़े-लिखे फिरे बेचारे
कैसे अब जीवन सँवारे
इस समस्या को कैसे सुधारें
जनसंख्या की बढ़ती दर
नौकरिया नहीं बढ़ती पर
जीवन का गिरता स्तर
आर्थिक समस्या है घर-घर
जन जन का है यही हाल
जीना हुआ है बेहाल
किससे करें अब सवाल
गरीबी बन गयी है ढ़ाल
काश । हो जाये इसका निदान
मिले कोई उचित समाधान
नेता लोग को हुये भान
जीना हुआ नहीं आसान
कदम हो कोई कारगर
नहीं हो कोई बेरोजगार
मिले सबको काम पगार
हर घर में हो खुशियाँ अपार।