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Manju Sharma

Abstract

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Manju Sharma

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प्रकृति

प्रकृति

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कहीं सूखा कहीं बाढ़ 

हुआ कैसे यह हाल 

मौसम था सदा नियमित 

अब क्यों हुआ यह बेहाल 


 खिलवाड़ किया था प्रकृति संग

 किया धरा पर प्रहार 

 दिखाती है अब वह

 अपने कई रूप अपार


 सीना छलनी कर धरा पर

 किया था क्रूर संहार 

 नि:शब्द और मौन रही 

 अब किया है पलट वार


  देख मानव की बर्बरता 

  कर रही है मौन चीत्कार

  होने लगा है अनियमित 

  सृष्टि का अब यह अवतार 


  अगर संभल जाये मानव

  देख प्रकृति का यह रौद्र रूप 

  हर जन अब तरू लगाकर 

  रखे धरा का हरित स्वरूप 


  जब ओढ़ेगी हरियाली चुनर 

  अंबर भी तब मेहरबान होगा

  प्रेम सुधा मधु छवि की

  अमृत वर्षा का सोपान होगा।


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