स्त्री
स्त्री
हो देवी स्वरूपा तुम,
क्यों सहती जुल्मों सितम,
करो दानव का संहार,
बन देवी शक्ति रूप तुम।
युगों युगों से हो रहा,
छलावा तुम्हारे संग,
बनकर सबला तुम,
करो इसे अब बंद।
पौरूष ने सदा वर्चस्व बनाया,
औरत को सदा तलवे से कुचला,
पर अब पढ़ी लिखी है नारी,
नहीं चलेगा अब यह जुमला।
हो जननी सृष्टि रचयिता,
इसे तुम स्वीकार करो,
अत्याचारों के तांडव का,
हर पल तुम प्रतिकार करो।