Ramanpreet -

Abstract

5.0  

Ramanpreet -

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वक़्त

वक़्त

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वक़्त की कगार पर

हर कोई परखा जाता है

फिर भी कहाँ वक़्त से पहले

कोई वक़्त की चाल समझ पाता है


ये वक़्त ही तो है जो

अपनों और बैगानों की पहचान कराता है

वक़्त की कद्र ज़रूरी है

वरना हर वक़्त मजबुरी बन जाता है

और हद से गुज़रे दर्द जो

तो बस वक़्त ही उसका मरहम बन पाता है


सच है यारों वक़्त का खेल निराला है

राजा और रंक का स्थान पल भर में बदल जाता है

वक़्त जो खुशियों से भरा हो तो

वो यादगार बन जाता है


लेकिन आज उन खुशिओं को जीने का 

कहाँ कोई वक़्त निकाल पाता है।


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