वक़्त
वक़्त
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ये वक़्त की रेत के पहरे हैं साहब
जो आपकी जिन्दगीं में कुण्डली मार के ठहरे हैं।
इनके दिमाग मे सिर्फ आपके ही चेहरे हैं
ये आप पर ढाने वाली अब कहरें है।
ख़तरनाक ऐसी जैसे समुन्द्र की लहरें है।
और ये आपके गुनाहों से भी ज्यादा गहरे है
इन्हें आपकी चीख से कोई मतलब नहीं साहब।
क्योंकि ये तो जन्मजात ही बहरें है।
इनकी तमाशबीन बन चुकी
दुनिया की कई शहरें हैं।
ये जो सियापा करते हैं न साहब
ये कहाँ कभी एक जगह पर ठहरें हैं।
वक्त की नज़रों ने लगाए हर जगह तुम पर पहरें हैं।
ये वक़्त की रेत के पहरे हैं साहब
जो आपकी जिन्दगीं में कुण्डली मार के ठहरे हैं।