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Hardik Mahajan Hardik

Abstract

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Hardik Mahajan Hardik

Abstract

वक़्त ही वक़्त से

वक़्त ही वक़्त से

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वक़्त ही वक़्त से वक़्त पे वक़्त का तगाता लगाता है ,

ज़िन्दगी ही ज़िन्दगी से ज़िन्दगी का जीवन जगाता है।


महफिलें महफ़िलों से महफ़िलों में ज़िन्दगी सजाता है ,

तन्हाईयो से मिलें तन्हायीं में मासूम सवाल कराता है।


मिलें नहीं वो कभी तन्हाईयों में अगर जब बताता है ,

तन्हा हर मंज़र मंज़ूर-ए-खुदा नवाज़ा तब जताता है।


समंदर गहरा अगर दरिया जैसा हार्दिक उतरता है ,

महफ़िलों से महफ़िलों में महफ़िलें यूँ ही सजाता है।


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