वक़्त ही वक़्त से
वक़्त ही वक़्त से
वक़्त ही वक़्त से वक़्त पे वक़्त का तगाता लगाता है ,
ज़िन्दगी ही ज़िन्दगी से ज़िन्दगी का जीवन जगाता है।
महफिलें महफ़िलों से महफ़िलों में ज़िन्दगी सजाता है ,
तन्हाईयो से मिलें तन्हायीं में मासूम सवाल कराता है।
मिलें नहीं वो कभी तन्हाईयों में अगर जब बताता है ,
तन्हा हर मंज़र मंज़ूर-ए-खुदा नवाज़ा तब जताता है।
समंदर गहरा अगर दरिया जैसा हार्दिक उतरता है ,
महफ़िलों से महफ़िलों में महफ़िलें यूँ ही सजाता है।
