वो
वो
बड़ी साफगोई से वो सिर्फ़ झूठ कहता रहा,
मैं मुस्कुरा कर मान न लेता तो क्या करता
मुद्दत बाद आया नई शक्ल पुराना शऊर लिए
मैं उसको पहचान न लेता तो क्या करता
गोया मुझे याद तो रखा था उसने अब तलक
मैं उसका ये अहसान न लेता तो क्या करता
वो मज़बूरियां गिना कर गया अपनी वकालत,
मैं अपने सर इल्ज़ाम न लेता तो क्या करता
मैंने ही सौंपा था उसे दिल भी खंजर भी,
अब वो मेरी जान न लेता तो क्या करता।