STORYMIRROR

Reh Amlani

Abstract Others

3.2  

Reh Amlani

Abstract Others

वो वक़्त बुढ़ापे का

वो वक़्त बुढ़ापे का

1 min
768


बुढ़ापा एक ऐसा वक़्त जो यादों में जिया जाता है

जो बोतल भरी है ज़िन्दगी सारी उसे एक एक घूंट पिया जाता है

हर एक घूंट पे उस लम्हे का स्वाद आता है

क्या गलत और क्या सही हुआ ये चख के एहसास होता है

कुछ अच्छा करने की ख़ुशी और कुछ न होने का रंज रहता है

पता चलता है की कौन अपना और कौन हमें लापता गंज कहता है

कोई चुप चुप तो कोई बस बोलता रहता है

किसी के साथ बुढ़ापे में अपना तो

किसी के साथ सिर्फ अपना बुढ़ापा ही रहता है


रह जाता है सब गुरुर वही का वही

अब तो बैठ जाऊं जहां से वह उठता तक नहीं

जो नहीं सहता था कभी किसी का कुछ

आज वही कुछ भी हो जाने पे कहता कुछ नहीं


सुना था सिखाती है ज़िन्दगी बहुत कुछ सही सुना था

पर सब समझ आता है बुढ़ापे में ये किसी ने नहीं कहा था

और अगर कहे भी कोई मेरी तरह तो कोई सुनता नहीं है

ये बुढ़ापा है मेरी जान ये आना सबको है ये कभी चुनाव करता नहीं है


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract