वो वक़्त बुढ़ापे का
वो वक़्त बुढ़ापे का
बुढ़ापा एक ऐसा वक़्त जो यादों में जिया जाता है
जो बोतल भरी है ज़िन्दगी सारी उसे एक एक घूंट पिया जाता है
हर एक घूंट पे उस लम्हे का स्वाद आता है
क्या गलत और क्या सही हुआ ये चख के एहसास होता है
कुछ अच्छा करने की ख़ुशी और कुछ न होने का रंज रहता है
पता चलता है की कौन अपना और कौन हमें लापता गंज कहता है
कोई चुप चुप तो कोई बस बोलता रहता है
किसी के साथ बुढ़ापे में अपना तो
किसी के साथ सिर्फ अपना बुढ़ापा ही रहता है
रह जाता है सब गुरुर वही का वही
अब तो बैठ जाऊं जहां से वह उठता तक नहीं
जो नहीं सहता था कभी किसी का कुछ
आज वही कुछ भी हो जाने पे कहता कुछ नहीं
सुना था सिखाती है ज़िन्दगी बहुत कुछ सही सुना था
पर सब समझ आता है बुढ़ापे में ये किसी ने नहीं कहा था
और अगर कहे भी कोई मेरी तरह तो कोई सुनता नहीं है
ये बुढ़ापा है मेरी जान ये आना सबको है ये कभी चुनाव करता नहीं है