वो छप्पर
वो छप्पर


वो छप्पर जिसके नीचे कभी चार
जिन्दगियों का गुजारा हुआ करता था।
जो जाड़े की गलन से
गर्मी की तपन से
बरसात की सीलन से उन्हें बचाता था।
खुद धूप, ठंड, बरसात को झेलकर
उन्हें सुरक्षित रखता था।
छप्पर को सहारा देने वाले दोस्त जैसे थाम ले,
उन पर होने वाले आँधियों के हमले।
लेकिन फिर भी वो हमेशा
छप्पर के साथ खड़ा रहता था,
आँधियों से टकराने के लिए अड़ा रहता था।
समय बीतता गया
धीरे-धीरे छप्पर जीर
्ण होने लगा
अपने ऊपर उगे घास फूस के कारण
वह रोगग्रस्त होकर क्षीण होने लगा।
थमले भी उसका साथ छोड़ने लगे,और
वो चार जिंदगियां भी उससे मुँह मोड़ने लगी।
जिन चार जिंदगियों ने उसके नीचे गुजारा किया,
जिनको उस छप्पर ने सहारा दिया।
आज समय बदलने पर वही उससे मुँह मोड़ने लगे,
अपनी स्वार्थी प्रकृति दर्शाकर
उसे तड़पता हुआ छोड़ने लगे।
ये एक छप्पर नहीं एहसास की व्यथा है,
यही मानव जीवन और समाज की कथा है।