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Thakkar Nand

Abstract

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Thakkar Nand

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वो बातें मेरे ही जेहन

वो बातें मेरे ही जेहन

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वो बातें मेरे ही जेहन में सब दबी निकली 


वो बोलता रहा इक बात ना नयी निकली,

जो उसने बोला वो सब बात ही कही निकली!


सुनाता सबको अगर मैं कहीं गलत होता,

यकीन मानो न मुझमें कोई कमी निकली!


जो शक था मेरा मेरे वो भी सामने आया,

खुशी हुई कि मेरी उलझने सही निकली!


मुझे तलाश थी जिस चीज़ की जमाने में,

वो चीज मेरे ही आंगन में तब छुपी निकली!


भुलाना चाहा तो वो याद फिर बहुत आयी,

वो बातें मेरे ही जेहन में सब दबी निकली!!



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