वक़्त
वक़्त
ख़ूब दबा के रखा वक़्त की रेत को
मगर मुट्ठियाँ जब भी खुली ख़ाली हाथ मिले
कभी मैं तो कभी तुम खो गये ये किस जद्दोजहद में
जाने क्यों अपने रास्ते अमावस की रात मिले
ख़्वाब पुरे और हम अधूरे से हैं
तमन्ना है फिर चाय की टपरी पर यारों का साथ मिले
कभी ख़ुद सीखा था अंगुली पकड़ कर चलना, आज सिखा रहे है
पिता से जीतना अच्छा लगता था, चाहत है के बेटे से मात मिले
कहानियाँ क़िस्से बहुत है, अनकहे अनसुने रह गये जो
ज़िंदगी की किताब में किसी पन्ने पर वो बात मिले
कभी आ बरसात की बालू पर फिर गढ़े घरोंदें
बेहिसाबों की इस दुनिया में कोई तो हिसाब मिले।