राजा और प्रजा
राजा और प्रजा
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राजा और प्रजा का होता,
पिता पुत्र सा प्यारा नाता।
दोनो का हक दोनो पर है,
हर कोई है फर्ज निभाता।।
राजा का दायित्व राज्य मे,
हो सम्पन्न सुखी सब जन।
नही क्रोध हो नही बैर का,
उपजे भाव किसी के मन।।
कभी क्रूरता दिखलाई जो,
की अपनी मनमानी।
सत्ता पलटी गया राज फिर,
होती प्राणों की हानी।।
प्रजा का प्रतिनिधि प्रजा से ही,
होता नृप कुल का परिपालन।
त्याग भाव से परहित मे रत,
रहे वही सम्यक् शासन।।
अपने हित मे प्रजा के ऊपर,
जो है भार बढाते जाते।
वो चूषक बन चूष सुखों को,
भीषण दुख अरु दैन्य बढाते।।
जिन्हें दीन की पीङा दुख का,
भान कभी भी नही होता है।
वो मदमत्त असुर कहलाता,
शान मान जीवन खोता है।।