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Prasoon Gupta

Romance

2.8  

Prasoon Gupta

Romance

वक्त, याद और उम्मीद

वक्त, याद और उम्मीद

2 mins
468


धूमिल होती इन यादों को, एक सहारा मिल जाये,

एहसान तुम्हारा हो जाये, गर प्यार तुम्हारा मिल जाये


टूट रही है याद तुम्हारी,बीते जाते इन लम्हों संग,

मेरा दिल फिर जन्म ले रहा, तेरे दिए गए जख्मों संग,

जो तुमने मुझे गुलाब दिए थे, तब रस्ते पर चलते-चलते,

उम्मीद छोड़ सब सूख गए हैं, राह तुम्हारी तकते-तकते,


उन्ही गुलाबों संग बैठा हूँ, शायद कुछ ऐसा हो जिससे,

इनमे फिर से जान आ जाये, ये दोबारा खिल जाएँ,

धूमिल होती इन यादों को, एक सहारा मिल जाये,

एहसान तुम्हारा हो जाये, गर प्यार तुम्हारा मिल जाये


नदी किनारे जो हमसे मिलने आती थी,

सात रंग वाली वो मछली अंधियारे में,

देखती है जब आज अकेले में मुझको तो,

पूछती है कुछ प्रश्न तुम्हारे बारे में,


उन प्रश्नों को सुनने भर से, मेरा अंतस हिल जाता है,

दो आंसूं पलकों पर आते हैं, और उसको उत्तर मिल जाता है,

आज उसी नदी किनारे, उस मछली के संग बैठा हूँ,

शायद कुछ ऐसा हो जिससे, सारा पानी ऐसे उछले,


दोनों साहिल तक हिल जाएँ,

धूमिल होती इन यादों को, एक सहारा मिल जाये,

एहसान तुम्हारा हो जाये, गर प्यार तुम्हारा मिल जाये


तड़प रही हैं आँखें मेरी, दीदार तुम्हारा करने को,

तुम क्या जानो कैसे मैंने, उनको समझाया है अब तक,

मेरा दिल बेचैन है रहता, साथ तुम्हारे रहने को,

सच मनो, उसको मैंने, सच नहीं बतलाया है अब तक,


पर उसकी भी गलती ही क्या है, वो इतना ही तो कहता है,

उस मन को अपने पास बुला लूँ, जो अब भी पास तुम्हारे रहता है,

उस दिल के संग में ही बैठा हूँ, शायद कुछ ऐसा हो जिससे,


या तो मन वापस आ जाये या पास तुम्हारे,

चला फिर से ये दिल जाये,

धूमिल होती इन यादों को, एक सहारा मिल जाये,

एहसान तुम्हारा हो जाये, गर प्यार तुम्हारा मिल जाये।  


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