विश्वगुरु भारत
विश्वगुरु भारत
है पवित्र मिट्टी शाश्वत गंगा सी जिसकी,
हनुमान हिमालय, शिव कैलाश में
बसता है !!
नहीं रखते यहाँ के वीर मोह स्वर्ग का,
हर दिल में हिन्द ऐ तूफ़ान बसता है !!
भरत के भारत, सिंध के सिंधु,
आर्य पुरातन कर्म है,
नर ऐसे उत्तम हैं इस जग में,
सनातन सबका धर्म हैं !!
यहाँ रखती स्त्री धीरज सीता सा,
करती सृजन एक तैयार है !!
बचाने लाज जहाँ द्रौपदी की,
श्री कृष्ण लेते धरती पे अवतार हैं !!
जहाँ जन्मा राणा सा वीर सपूत,
जो अरी कभी ना सोने दिया !!
विष बीज कभी ना बोने दिया !!
माँ का दूध कलंकित ना होने दिया !!
आर्य, शौर्य, धृति, बौद्ध, शाक्त,
है कण कण में जहाँ बसा हुआ !!
टिक सका ना कोई समक्ष जिसके,
वीरों ने इतिहास है रचा हुआ !!
जहाँ मंदिर में घंटी बजती,
मस्जिद की पाक अजान है !!
हो हिन्दू - मुस्लिम सिख या इसाई,
कहलाता पहले इंसान है !!
मैं क्या करूँ व्याख्यान उस भारत का,
जो स्वयं विश्वगुरु महान है !!
