STORYMIRROR

Dr Sushil Sharma

Abstract Classics

3  

Dr Sushil Sharma

Abstract Classics

विलम्बिता छंद

विलम्बिता छंद

1 min
239

अनेक रूप तेरे।

प्रभो समीप मेरे।।

हरो प्रमाद फेरे।

कृपा कटाक्ष घेरे।।


बनो सुकर्म ज्ञानी।

सुनो सुबोध वानी।।

बचो अधर्म घेरे।

अमोघ पुण्य फेरे।।


अरे अबोध बच्चे।

करो सुकर्म सच्चे।।

बनो महान ऐसे।

खिलो विहान जैसे।।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract