विज्ञात सवैया...
विज्ञात सवैया...
रगण तगण तगण मगण,
रगण भगण तगण गुरु गुरु
212 221 221 222, 212 211 221
संगिनी साथी सखी सॉंझ शर्माती,
क्या कहें जो सुर कोई सजाती ।
रागिनी सी राग गाती हमें भाती ,
सर्वदा बात यही वो बताती ।।
आ रही हैं प्रेम की ऑंधियॉं देखो,
प्रेम ही आज हॅंसाती रुलाती ।
जिंदगी की मौत से सामना होगा,
जान लो मौत हमें ही हराती ।।