बुलंदी
बुलंदी
छू लेना गर तुम कभी भी ज़िंदगी में बुलंदी को,
अपनों को ना भूल जाना पाकर तुम बुलंदी को,
कठिन-आसान सुख-दुःख हर मोड़ में साथ देते,
पग-पग में क्षण-क्षण याद रखो पाकर बुलंदी कोI
आशा नहीं विश्वास है हाथ में अपने, मैं पाऊँगा;
एक न एक दिन, कुछ न कुछ करके दिखाऊँगा,
बालक हूँ नादां हूँ मगर मेरे हाथों पे न जाओ यूँ,
लगन समर्पण मेहनत से बुलंदी को मैं पाऊँगाI
