वीर पुत्र की माँ
वीर पुत्र की माँ
एक माँ ने महीनों इंतज़ार किया,
और फिर हुआ उसका जन्म।
जिसे बनना था अपनी माँ का सहारा,
क्योंकि न था सर पर हाथ पिता का।
माँ ने पाला–पोसा,
पढ़ाया–लिखाया,
बड़ा बनाया,और सुनाई उसे उसके पिता की वीर कथा,
क्योंकि हुए वो वीर शहीद थे।
बेटा हर पल यही सोचता,बनना है अपने पिता जैसा उसे।
बेटा बड़ा होकर फौज में भर्ती हुआ, अब वह वक्त आ चुका था।
छोड़ कर अपनी माँ का आँगन, उसे अपना फर्ज़ निभाना था।
मुश्किल था माँ बेटे के लिए, एक दूसरे से अलग होना।
लेकिन बेटे ने अब सौगंध ले ली थी, अपने देश के लिए ही जियूँगा अब।
बेटा माँ का आशीर्वाद लेकर,
चल पड़ा अपने फर्ज़ को पूरा करने,
माँ ने कहा बेटा रखना अपना ध्यान।
अपने कलेजे के टुकड़े को दूर जाता देख,
कैसा लगता है यह तो वही जानते हैं,
जिनके बच्चे उनसे दूर जाते हैं।
ऐसे ही समय बीतता गया, माँ अपने बेटे को याद करती थी,
और बेटा बॉडर पर अपनी ड्यूटी कर रहा था।
दोनों अकसर फोन पर बात किया करते, माँ को सुकून मिलता बातें करके।
फिर वह समय भी आया, बॉर्डर पर कुछ अच्छी स्थिति नहीं थी,
दोनों तरफ से जंग छिड़ी थी वह आगे बढ़ता और अपनी ड्यूटी पूरी करता ।
इस जंग में लड़ते–लड़ते वहा घायल हुआ, अपने आखरी समय में अपनी माँ के बारे में सोचता,
और दूसरी तरफ उसे अपने ऊपर गर्व की अनुभूति हुई की,
उसका देश की प्रति फर्ज़ पूरा हुआ।और जवान को वीरगति प्राप्त हुई।
माँं को फिर खबर मिली की,हो गया है उसका लाल देश के लियेे शहीद,
माँ का दिल रो पड़ा उसका बुढ़ापे का सहारा न रहा, माँ को अपने बेटे पर गर्व था ।
उन सभी माँ के कर्ज़दार सदा रहेंगे हम,जिन्होंने ऐसे वीर पुत्रों को जन्म दिया।
असल में तो यह माँ ईश्वर से भी ऊंची हो गई,
जिसने अपने बच्चे को वीर फ़ौजी बनाया,नमन है ऐसी माँ और वीर पुत्र को।