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Sukriti Daksh

Abstract

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Sukriti Daksh

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विद्यालय विदाई

विद्यालय विदाई

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बीत गए साल बारह,

और आ गया वो दिन सुहाना,

विद्यालय विदाई जब निकट थी ,

बड़ी सुहानी वो शुभ घड़ी थी।


कितने दिनो के पूर्वाभ्यास के बाद,

आज सब नाचे और गायेंगे एक साथ,

जहाँ एक ओर दिल में मौज-मस्ती थी,

वहीं अध्यापकों से बिछड़ने की कश्मकशी थी।


सुबह नई पोषाकों के साथ ,

जमघट लगा सबका एक - साथ,

सबके चेहरों पर नई ऊमंगें थीं,

इस आखिरी साल की खूब तरंगे थीं।


फिर शुरू हुआ हमारा नाच - गाना,

और अध्यापकों के बीच

खिलखिला कर मुसकुराना,

आज उनसे ना कोई डर था,

उनके साथ अब एक

दोस्तों वाला संबंध था।


उसके बाद हुई पेट पूजा,

जिसमे मनपसंद भोजन

का था राज़ दूजा,

आज विद्यालय प्रांगण में

हम डी.जे. पर नाचे,

अपने बारह साल बिताये

पलों को कनखियों से ताके।


सबसे कठिन थी वो अंतिम विदाई,

जब अध्यापकों द्वारा

भेंट किये गए स्मृति चिन्ह से,

सबकी आँख भर आई।


बड़ी मुश्किल वो एक घड़ी थी ,

जिसमे बहते अश्रुओं की धारा खड़ी थी,

उस धारा के बीच फँसे हम बेजुबान,

अपने दोस्तों से लिपटे

याद कर उनके एहसान।


फिर ज़हन में आई

प्रांगण की वो सीढ़ियाँ,

जब उंगली पकड़ माँ-बाप की

चढ़े थे उनपर रोते हुए कभी,

आज उन्हीं सीढ़ियों से

उतर रहे फिर से अश्रु लिए,

विद्यालय विदाई पर

अपनी पंक्तियाँ गुनगुनाते हुए।


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