वही हीर है
वही हीर है
क्या ये वही हीर है
जो कभी रांझा के लिए मरती थी ,
और वो कभी छोड़ के न जाये
इसलिए बहुत डरती थी।
उस पर कोई आंच ना आये
इसलिए खुद को हमेशा सँवारती थी,
पर ना जाने क्यों ये सोच कर
वो हमेशा घुट घुट के मरती थी।
हाँ ये वही हीर है जो कभी लैला बनके
इस मजनू की ज़िंदगी मे आई थी,
और हर प्यार की तरह जिंदगी भर
साथ निभाने की कसमें खाई थी।
हाँ ये वही हीर है जो कभी लैला बनके
हमारी जिंदगी में आई थी,
और नजाने ऐसा क्या हुआ
वो कसमे वादे भूल के
किसी रोमियो के साथ भी
उसने राते बिताई थी।
हाँ ये वही हीर है और वही लैला है
जो आज जूलिएट के नाम से जानी जाती है,
और अब दिन के चैन के साथ
रात की नींद भी लेके खाती है।
पर एक बात तो ये भी है कि
इन सबने प्यार में जान दी है ,
नजाने ये कलयुग की कैसी मोहब्बत है
जो जाने लेते फिरती है।