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Himanshu Sharma

Abstract

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Himanshu Sharma

Abstract

उपन्यास-प्रकाशन

उपन्यास-प्रकाशन

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बड़ी उम्मीद से लिखकर के,संपादक को कथानक भेजा!

भेजने के चंद क्षणों के भीतर,वापिस उन्होनें अचानक भेजा!

सकपका के मैंने भी श्रीमन को,ई-पत्र लिखा साधकर मन को!

"महोदय क्यों वापिस किया इसे,क्यों नहीं आपने इसको सहेजा?"

वहाँ से आया प्रत्युत्तर सधा हुआ,हर शब्द नापतौल के बंधा हुआ!

"श्रीमान, आपका मिला पत्राचार,उत्तर सुनने को बांधो ये कलेजा!"

"माना आपकी रचनायें अच्छी हैं,मगर दिक्कत ये है कि सच्ची हैं!

सच तो आजकल बिकता नहीं है,इसलिए, ससम्मान वापिस भेजा!"

मानकर बात सच को कुंद करा,जेल में बंद झूठ को स्वछन्द करा!

छपने गया है उपन्यास, संपादक,का कहना है कि ये खूब बिकेगा


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