उम्मीद
उम्मीद
ये उम्मीद ही इंसान को इंसान से जोड़ती है,
उम्मीद से ज्यादा उम्मीद इस रिश्ते को भी तोड़ती है।
किसी से उम्मीद उतना ही रखना,
जितना तितली फूलों से रस चाहती है,
जितना पतंग आकाश में उड़ना चाहता है।
उम्मीद जब टूटती है तो कोई आवाज नहीं होती है,
उस उम्मीद में सिर्फ एक एहसास होता है।
दर्द, चुभन, आक्रोश, बदला,
क़शमक़श का मंथन भी वेग होता है।
जनाब, इस उम्मीद से उतना ही उम्मीद रखिए,
कि उम्मीद टूटे तो कोई खास रिश्ता न छूटे।