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Shipra Singh

Abstract

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Shipra Singh

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दिल की बात

दिल की बात

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जिसने हँसाया उसी ने रुलाया, 

इन होंठो की ख़ुशी को उसी ने चुराया।


दिखाया ऐसे की उसे है मेरी फ़िक्र,

आजकल न होती उसके बातों में मेरी जिक्र। 


न दिखता, न देखने देता,

खुद को मुझसे रूबरू न होने देता।


न संदेश पढ़ता, न कॉल उठता,

बेवजह वह मुझे तरसता। 


अब नहीं उसे वह चिंता और दर्द,

शायद उसके लिए बन गयी थी मैं एक सर दर्द।


जिन पंक्तियों को मैंने बयाँ किया,

ना समझना इसे अपने जीवन से साझा किया।

 

थी किसी और की बात,

पर दिखा गया वो अपना खाने और दिखाने के दाँत।


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