तुमसे ही सब !!!
तुमसे ही सब !!!
खामोश रहते हैं वह जुबां कभी
न जाने आँखों में क्या बात है
एक सीने में धड़कते कई दिल
सबके अपने जज़्बात है
उम्मीद मेरे सागर जैसे
मगर मुझे मिलता कभी एक बूँद है
आँखों में सजा कर कई सपने
मुझे न मिलता सुकून का नींद है
मुझसे हे पहचान बने
मुझसे कई रिश्ते हैं
घरों में जो खिलते हैं अक्सर
मेरे प्यार के गुलदस्ते हैं
घर की इज़्ज़त मैं बाज़ार नहीं
जहाँ कहीं मेरी बोली हो
अक्सर जीवन के रंगों में रंगति मैं
जैसे मानों होली हो!
दर्द के बहाने न मिले कभी
अक्सर कहीं वह खो गए
भरी आँखों के खामोशियों में
वो तारे बन के सो गए
ज़ख्मों से न डरती है
बुलुंद उसके इर्रादे हैं
अक्सर तन्हाइयों में भी
टूटे उसके वादे हैं!
कभी पत्नी कभी माँ
बन कर रिश्ते निभाती है
खाना सबको परोस के वह
खुद ही भूकी रहे जाती है!
कितने दर्द से गुज़र के वह
न जाने क्या-क्या सहे जाती है
अक्सर भीगे आँखों से वह
कितने कहानी कहे जाती है
अब तो समझो दुनिया वालों
उनसे ही जहाँ सवरतैं हैं
तुम्हारे दिए हुए काँटों को
भी वह फूल समझते हैं