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Prashant Shakun

Romance

4  

Prashant Shakun

Romance

तुमको भी ग़र ठोकर में

तुमको भी ग़र ठोकर में

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तुमको भी ग़र ठोकर में अपनी ये ज़माना चाहिए 

अमा मियाँ कुछ तो हुनर तुमको भी आना चाहिए 


आते हैं तेरी गली हर रोज़  फ़क़त दीदार वास्ते 

कभी - कभी तुम्हें  भी मेरी गली आना चाहिए 


तोहफे में मिला गुलाब हाथोंं में लिए फिरते हो 

इश्क़ है अभी नया नया इसे अभी छुपाना चाहिए 


ख़्वाबों  में ही आना मिलने मुझसे तुम हर बार 

दरमियाँ अपने नहीं मुझको येे  ज़माना चाहिए 


आशिक़ हूँ तुम्हारा मुझे आवारा न समझना तुम 

यूँ  बेरुख़ी से इश्क़  नहीं आज़माना  चाहिए 


कितनी  हसरत लिए आते हैं गली में तुम्हारी 

तुम्हें भी तो एक दफ़ा दरीचे तक आना चाहिए 


अच्छी लगती है अना  शख़्सियत पर तुम्हारी 

कुछ गुरुर हमें भी अब खुद पर आना चाहिए 


रूठने का हक़ तुम्हारा ही  नहींं मेरा भी तो है 

मैं जो रूठूँ कभी तुम्हे भी मुझे मनाना चाहिए।


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