तुम
तुम
बहुत देर से सोच रहा हूँ क्या लिखूँ
तुमको कितना लिखूँ तुमको क्या लिखूँ
तुम्हें गुलाब भी कह दिया है चांद भी
तुम्हें कभी ख्वाब पुकारा है याद भी
तुमसे दूर हो कर तुम्हें महसूस किया है
कि इस शिद्दत से तस्वीर को जिया है
काग़ज़ महज़ कागज़ ही तो ठहरा
क्या उतार पायेगा वो मुक्कमल तुमको
तुमको लफ्ज़ बांध पाते तो लफ़्ज़ों से
क्या यूँ ही जाने देता पल पल तुमको
कई बार पहुँचा हूं तुम्हारी नर्म उगलियो तक
बस कुछ अल्फाजो की दूरी रह जाती है
मेरा कागज़ मेरी कलम के होठ ताकता है
तुम्हारे इतजार में हर नज्म अधूरी रह जाती है।