तुम से ही...
तुम से ही...
तुम से ही शुरुआत हुई,
हिम्मत भी तुम्ही से,
तुम ही से रास्ता मिला,
और मंज़िल भी तुम्ही से।
तुम ही ने आगे बढ़ने वज़ह दी
और तुम ही से हौंसला भी,
तुम ही ने थामा था हाथ मेरा,
जब भी में गिरी थी।
मेरी नादानियॉ और बद्दतमीजीं
तुम ने ही तो जेली थी,
तुम ही ने समज़ाया,
क्या है गल़त है क्या सही।
तुम से ही सीख़ा ये बेबाकपन,
सच बोलना तुम्हारी भी तो आदत है,
गल़ती हज़ारों की
पर सुधारना सीख़ा है तुम्ही से।
तुम्हारी ही तरह चीज़ें संजोती हूं
परछाई हूँ ना तुम्हारी हर बार
तेरी तरह होने की कोशिश करती हूं।