तुम और मैं
तुम और मैं
कभी कभी लगता है,
में तुझे समज नहीं पाती,
या शायद समझना ही नहीं चाहती,
तुजमे उठती लहेरोंको में छू नहीं पाती ....
या शायद, तेरे मन तले,
पहुँचना ही नहीं चाहती !
सिर्फ बहना चाहती हूँ,
दूर बहुत दूर तक,
वहाँ, जहाँ और कोई ना,
और कुछ भी न !
ना तुझे खोने का डर,
ना तुझे पाने की ख्वाहिश,
वहाँ, जहाँ तुम सिर्फ तुम हो,
और मैं सिर्फ मैं !

